SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 678
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५९२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रेमानंदकृत 'नळाख्यान'मां पण 'अन्या' शब्द वपरायेलो छ : नळ छ कुंवारो, नथी कन्या, छे ब्रह्मानो मोटो अन्या. नळने माटे कन्या नथी सर्जी ए ब्रह्मा एटलेके विधातानो मोटो दोष छे एम अहीं अभिप्रेत छे. कस्तुवा.मां - लोभे लक्षण जाय, अन्या अति अधर्मे. संपादके 'अन्या'नो 'अन्याय' एवो अर्थ आप्यो छे, पण अहीं लोभनां परिणामो वर्णव्यां छे. तेथी 'दोष'नो अर्थ लेवो ज वाजबी छ : "लोभ करवाथी सारां लक्षण नष्ट थाय छे, अधर्मनो दोष थई जाय छे." वेताप.मां - पारवती बोल्या मावडी, 'अरे शीव, अन्या आवडी, जीव ए सहु कोना जाय छे, ए पाप आपरणे थाय छे.' संपादके 'अन्याय' अर्थ आप्यो छे ते देखीती रीते चाले, पण पांच पुरुषो मरवा तैयार थया छे ते संदर्भमां आ वाक्य बोलायुं छे तेथी 'खोटुं कर्म' एवो अर्थ ज वधारे उचित गणाय : “अरे शिव, आ केटलुं खोटुं थाय छे ! आ सहुना जीव जाय छे एर्नु पाप आपणने लागे छे." चंद्रवा.मां - जुए सौ को जगत, कोये केहे नहि अंबा. निशा विशेनी समस्यामां आ पंक्ति आवे छे तेथी संपादके आपेलो अर्थ 'दोष, वांक, खोडखांपण' यथायोग्य छे : "आखं जगत एने जुए छे अने कोई एमां कशी खोडखांपण होवानुं कहेतुं नथी." ..एमां ज - कीधो पितानो काळ, एह पण मोटो अन्या. छास विशेनी आ समस्या छे तेथी संपादके आपेलो 'दोष' ए अर्थ बराबर छ : "एणे पोताना पितानी हत्या करी छे, ए एनो मोटो दोष / मोटुं दुष्कृत्य छे." नरका.मां - ___ओ पेलो ओशियाळो आवे, अजैयो अपार. अहीं 'अन्नैयो' ए 'अन्यायी'ने स्थाने छे. संपादके एना 'वांकाबोलो, अणचियो' एवा अर्थो आप्या छे, एमांथी 'वांकाबोलो' ए अर्थ माटे कोई आधार जणातो नथी. नटखट कृष्णने अनुलक्षीने आ उद्गार छे एटले 'अणचियो' अर्थ चाले, पण वधारे योग्य अर्थ 'अटकचाळो, तोफानी, मस्तीखोर' ए गणाय. __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy