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________________ न वीसरवा जेवो वारसो बारमी सदीथी ओगणीसमी सदी पूर्वार्ध सुधीनुं गुजराती साहित्य, जेने आपणे प्राचीन के मध्यकालीन गुजराती साहित्य तरीके ओळखीए छीए ए आपणो एक न वीसरवा जेवो, मूल्यवंतो वारसो छे. आम कहेवानुं प्राप्त थाय छे ते एटला माटे के ए साहित्य आपणे माटे हवे केटलुं प्रस्तुत रह्युं छे ए विशे आपणने शंका छे अने शाळा-महाशाळाना आपणा अभ्यासक्रमोमां एनुं स्थान घटतुं जई रह्युं छे. मध्यकालीन साहित्य एटले भक्तिवैराग्यनुं गाणुं अने ऊछरती पेढीने एना पाठ भणाववानुं औचित्य केटलं एवो प्रश्न करवामां आवे छे अने महाशाळानी कक्षाए पण एना अभ्यासनी सार्थकता आपणने झाझी वरताती नथी. शाळाकक्षानां पाठ्यपुस्तकोमां मध्यकालीन कृतिओनुं प्रतिनिधित्व अत्यारे चारछ कृतिओ पूरतुं पाठ्यपुस्तकना पांचमा-छठ्ठा भाग जे थई गयुं छे अने गुजरात युनिवर्सिटीना द्वितीय वर्ष बी.ए. ना मध्यकालीन गुजराती साहित्यना प्रश्नपत्रमां हमणां ज नर्मदयुगने जोडी दईने मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासने पांखो बनावी देवामां आव्यो छे. पाश्चात्य प्रजाना संपर्क पछी, आपणने एवं लागे छे के, आपणां जीवन अने साहित्यनी दिशा एटलीबधी बदलाई गई छे के आपणे पूर्वकाळथी जाणे विच्छिन्न थ गया छीए. आपणी रहेणीकरणी, आपणां साधनसगवड, आपणां विश्वासो - मान्यताओ, आपणां ज्ञानविज्ञान, आपणां तंत्रो संस्थाओ - आ बधांमां क्रान्तिकारक परिवर्तन आव्यां छे अने आपणा साहित्ये जुदां ज आदर्शो, प्रयोजनो अने रचनारीतिओ धारण कर्यां छे. पूर्वकाळना साहित्यमां रस लेवानुं, तेथी, आपणे माटे बहु ओछु शक्य रह्युं छे अने ए साहित्यप्रणालिका आजे आपणने कई काममां आवी शके एवं पण आपणने खास देखातुं नथी. मध्यकालीन साहित्य धर्मना संकुचित वाडामां बंधायेलुं छे जीवननी विशाळता एमां व्यक्त थती जणाती नथी, ए परंपरानिष्ठ छे – एमां मौलिकतानो अनुभव आपणने खास थतो नथी, ए हेतुलक्षी छे - एमां कळासर्जननी स्वायत्तता प्रतीत थती नथी. - एवात साचीछे के मध्यकालीन साहित्य बहुधा कंईक ने कंईक धार्मिक-सांप्रदायिक संदर्भ लईने आवे छे. आनुं कारण ए छे के मध्यकाळमां धार्मिक-सांप्रदायिक संस्थाओए साहित्यने आश्रय आप्यो छे अने वधारे अगत्यनुं तो ए छे के मध्यकाळमां प्रजाजीवन धर्मसंप्रदायबद्ध हतुं. केटलीक वार जैन साहित्यने ज सांप्रदायिकतानी छाप लगाववामां आवे छे, जाणे के जैनेतर साहित्यमां सांप्रदायिकता न होय. आ यथार्थ दर्शन नथी. ब्राह्मणधर्म के हिन्दुधर्मनां तत्त्वो विशाल जनसमाजमां फेलायेलां छे अने इतर प्रजावर्गोनेये Jain Education International 2010_03 - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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