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________________ [8] साहित्यकोशना कार्यमांथी हुं परवारवामां होई हवे आ योजना पाछळ वधु समय आपवानी स्थितिमां हुं हतो तेथी में ए प्रस्ताव होंशथी स्वीकारी लीधो. प्राप्त शब्दकोशोने केवळ संकलित करी लेवानो आशय तो नहोतो. एक शक्य तेटलो प्रमाणभूत कोश रचवानो आशय हतो. जे ते संपादके पोताने प्राप्त साधनो ने पोतानी सज्जता तथा समजने आधारे अर्थ आप्या होय. अनुमानथी अर्थ आपवानुं बनी गयुं होय अने क्यांक गेरसमज पण प्रवर्ती होय. आजनी आपणी समज अने आजे प्राप्त साधनथी अर्थोने चकासीए तो ज प्रमाणभूत कोश ऊभो थई शके. अर्थोने त्यारे ज चकासी शकाय ज्यारे शब्दनो ज्यां प्रयोग थयो होय ए स्थान सुधी आपणे पहोंची ए. आथी आयोजनामां एवी मर्यादा पहेलेथी ज स्वीकारी हती के आमां एवा शब्दकोशो ज संकलित करवा जेमां शब्दो वर्णानुक्रमे अपायेला होय अने शब्द कृतिमां जे स्थाने वपरायो होय तेनो निर्देश होय. बधा शब्दार्थो कई चकासी शकाय नहीं, चकासवाना होय नहीं, ज्यां शंका जाय त्यां ज चकासी शकाय. पण चकासीने सुधारवा पडे एवा शब्दार्थो धार्या करतां घणा वधारे नीकळ्या. डॉ. भायाणीने आ प्रकारना संकलन सामे जे वांधी हतो के एमां साफसूफीनी महेनत वधी पडे ने एना करतां तो कृतिमांथी ज स्वतंत्र रीते कोश करवानुं सुगम पडे एनुं वाजबीपणुं समजाय एवी परिस्थिति सामे आवी. आम छतां में जोयुं के कृतिमां तो शब्दकोशमां न समावायेला होय एवा घणा कूट शब्दो पडेला हता अने शब्दकोशोमां पण विद्वानोए घणे स्थाने, हुं सहेलाईथी ज्यां पहोंची शक्यो न होत एवा अर्थो निर्णीत करी आपेला हता. चकासवा पडे एवां घणां स्थानो मळवा छतां मने जे तैयार सामग्री मळती हती ए ओछी न हती अने स्वतंत्र रीते कोश करवानुं काम तो आथी अनेकगणुं महेनतभर्युं बनी गयुं होत, मारा गजा बहारनुं बनी गयुं होत ए प्रतीति तो मारी छेवटे रही ज. कृतिमांथी सीधा शब्दो लईने तैयार करेला शब्दकोशनुं महत्त्व स्वयंस्पष्ट छे. एनं स्थान आ संकलित कोश न ज लई शके. पण एकदाच एक व्यक्तिनुं काम न होई शके, ए एक व्यवस्थित विभाग द्वारा ज वधारे सारी रीते थई शके. एमां पण डॉ. भायाणी विचार्य हतुं म बारमी सदीथी सैकावार जवानुं ज ठीक पडे. मने तो एम लागे छे के पहेलां एक-एक कृतिना विस्तृत ने सर्वग्राही कोशो तैयार करवा जोईए. 'षडावश्यक बालावबोध' के 'विमलप्रबंध' जेवी कृतिओना केटलाबधा लाक्षणिक मध्यकालीन शब्दो त्यां आपेला शब्दकोशनी बहार रह्या छे ! आवी एक कृतिनो संपूर्ण शब्दकोश पण श्रमभर्यो प्रकल्प बनी रहे. पण आपणी पासे डॉ. भायाणीए एमनां संपादनोमां आपेला अने प्राच्य विद्यामंदिरनी . Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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