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________________ तओ दुस्सन्नप्पा-दुठे, मूढ़े, वुग्गाहिते। दुष्ट को, मुर्ख को, और बहके हुए को प्रतिबोध देना बहुत कठिन है । -स्थानाङ्ग (३/४ ) पत्थं हिदयाणिपि, भण्णमाणस्सं सगणवासिस्स । कडुगं व ओसहं तं, महुर विवायं हवइ तस्स ।। अपने गणवासी साथी द्वारा कही हुई हितकर बात भले ही वह मन को प्रिय न लगे; कटुक औषध की तरह परिणाम में मधुर होती है । --भगवती-आराधना ( ३५७ ) उपदेशक ससमय-परसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो । गुणसयकलिओ जुत्तो, पवयणसारं परिकहेऊं । स्वसमय व परसमय का ज्ञाता गम्भीर दीप्तिमान, कल्याणकारी और सौम्य है तथा सैकड़ों गुणों से युक्त है वही निर्ग्रन्थ-प्रवचन के सार को कहने का अधिकारी है। —बृहत्कल्पभाष्य ( २४४) करुणा करुणाए जीवसहावस्स। करुणा जीव का स्वभाव है । -~-धवला (१३/५) कर्म जं जं समयं जीवो, आविसइ जेण जेण भावेण । सो तंमि तंमि समए, सुहासुहं बंधए कम्मं ॥ [ ७७. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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