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________________ दाणाणं चेव अभयदयाणं । 'अभयदान' सब दानों में श्रेष्ठ है । -प्रश्नव्याकरण ( २/४ ) अभयं पत्थिवा ! तुब्भं अभयदाया भवाहिया । पार्थिव ! तुझे अभय है और तु भी अभयदाता बन । __-उत्तराध्ययन ( १८/११) संवेगजदिकरणा, णिस्सल्ला मंदरो व्व णिक्कंपा। जस्स दढ़ा जिणभत्ती, तस्स भयं णत्थि संसारे॥ जिसके हृदय में संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न करनेवाली, शल्य-रहित एवं मेरुवत् निष्कम्प और दृढ़ जिनक्ति है, उसे संसार में किसी तरह का भय नहीं है। -भगवती-आराधना (७४५) सत्त भयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अकम्हाभए, आजीवभए, मरणभए, असिलोगभए । भयस्थान के सप्तस्थान कहे गये हैं। वे हैं-१. इहलोक-भय, २. परलोकभय, ३. आदान-भय, ४. अकस्मात भय, ५. आजीविका-भय, ६. मरण-भय और ७. अपयश-भय । -समवायांग (७/१) सत्तभयविप्पमुक्का, जम्हा तम्हा दु णिस्संका। जो सप्तभय से मुक्त होते हैं, वे सर्वदा निश्शंक होते हैं । -समयसार ( २२८) निभएण गतिव्वं। तुम निर्भय होकर विचरण करो। -निशीथचूर्णिभाष्य ( २७३) [ २६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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