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________________ सत्य के प्रभाव से देवता भी मनुष्य को वन्दन करते हैं और उसके वश में होते हैं । वे उसका रक्षण करते हैं और पिशाच उससे दूर ही रहते हैं । - भगवती आराधना ( ८३६ ). सच्चमि वसदि तवो, सञ्चम्मि संजमो तह वसे सेसावि गुणा । सच्चं णिबंधणं हि य, मच्छाणं ॥ गुणाणमुदधीच सत्य में तप, संयम और शेष समस्त गुणों का वास होता है । जैसे 'समुद्र मत्स्यों का कारण — उत्पत्ति स्थान है, वैसे ही सत्य समस्त गुणों का कारण है । - भगवती आराधना ( ८४२ ) जे तेउ वाइणो एवं, न ते संसार पारगा । जो असत्य की प्ररूपणा करते हैं, वे संसार - सागर को पार नहीं कर सकते । - सूत्रकृताङ्ग ( १/१/१/२१ ) सादियं न मुखं ब्रूया । मन में कपट रखकर असत्य भाषण न करो । सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति I सत्य वचनों में भी अनवद्य सत्य श्रेष्ठ है । - सूत्रकृताङ्ग (१/८/१६ ). से दिट्टिमं दिट्ठि न लूसएजा । सम्यग् दृष्टि साधक को सत्य दृष्टि का अपलाप नहीं करना चाहिये । - सूत्रकृताङ्ग ( १/१४/२५ ) - सूत्रकृताङ्ग (१/८/२३ ) सच्चा विसान वक्त्तव्वा, जओ पावस्स आगमो । . Jain Education International 2010_03 वह सत्य भी नहीं बोलना चाहिये, जिससे किसी तरह का पापागम होता है । - दशवैकालिक ( ७/११ ) For Private & Personal Use Only [ २६६ www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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