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________________ सीलं मोक्खस्स सोवाणं । शील मोक्ष का सोपान है। -शीलपाहुड़ (२०) सीलं वरं कुलाओ कुलेण कि होइ विगयसीलेण । कमलाइ कद्दमे संभवंति न हु हुंति मलिणाई॥ कुल से शील श्रेष्ठ है ! शीलच्युत कुल से क्या लाभ ? कमल पंक में जन्म लेता है, परन्तु मलिन नहीं होता । -वज्जालग्ग (८/६) सीलं कुलआहरणं, सीलं रूवं च उत्तम होइ । सीलं चियपंडितं सीलं चिय निरुवमं धम्म । शील कुलवान का आभूषण है शील ही उत्तम रूप है । शील में ही सच्चा पांडित्य है और शील में ही निरुपम धर्म है । -सम्बोधसत्तरि (५७) सीलं उत्तमवित्तं, सीलं जीवाण मंगल परमं । सीलं दोहग्गहरं, सीलं सुक्खाण कुल भवणं । शील उत्तम धन है, शील प्राणियों का परम मंगल है, शील दुःखनाशक है शील सुखों का खजाना है । -कामघट कथानक ( १२५ ) शौचधर्म समसंतोसजलेणं, जो धोवदि तिव्व लोहमल-पुंज । भोयण-गिद्धि-विहीणो, तस्स सउच्चं हवे विमलं । जो समता व सन्तोषरूपी जल से तीव्र लोभ रूपी मल-समूह को धोता है और जिसमें भोजन की लिप्सा नहीं है, उसके विमलशौचधर्म होता है । -कार्तिकेयानुप्रेक्षा ( ३६७) [ २५१ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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