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________________ अ दंत सोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं । अस्तेय व्रत का साधक किसी की आज्ञा के बिना, और तो क्या, की स्वच्छता हेतु एक तिनका भी नहीं लेता । अचौर्य - उत्तराध्ययन ( १६ / २८ ) लोभाविले आययई अदत्तं । जब आत्मा लोभ से कलुषित होता है, तब चोरी करने के लिए उद्यत होता है । -उत्तराध्ययन ( ३२ / २६ ) अदत्तादाणं... अकित्तिकरणं, अणज्जं... सया साहुगरहणिज्जं । चौर्य-कर्म अपयश करनेवाला अनार्य-कर्म है । यह सभी भले व्यक्तियों द्वारा सदा निंदनीय है । परव्यादो दुग्गई सहव्वादो हु सुग्गई हवइ । इय णाऊणसदव्वे कुणहरई विरह इयरम्मि || अपने दांत Jain Education International 2010_03 - प्रश्नव्याकरणसूत्र ( १ / ३ ) परव्वहरणमेदं आसवदारं खु वेंति सोगरियवाहपरदारयेहि खोरो हु परद्रव्य से दुर्गति होती है और स्वद्रव्य से सुगति होती है, ऐसा जान कर तू स्वद्रव्य में रति कर और परद्रव्य से विरक्ति | परद्रव्य हरण करना पाप आगमन का द्वार है। सूअर का घात करनेवाले, मृगादिकों को पकड़नेवाले तथा परस्त्री गमन करनेवाले से भी चोर अधिक पापी गिना जाता है । For Private & Personal Use Only - मोक्ष - पाहुड़ (१६ ) पावस्स । पापदरो ॥ - भगवती आराधना (८६५ / ६८४ ) [ www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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