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________________ जह वा बिसगंडूलं, कोई घेत्तूण नाम तुहिक्को । अण्णेण अदीसन्तो, किं नाम ततो न व मरेजा ॥ यदि कोई चुपचाप छिपकर विष पी लेता है, जहाँ कोई उसे न देख रहा हों तो क्या वह उससे नहीं मरेगा ? धंतं पिदुद्धर्कखी, न लभइ दुद्ध अधेणूतो । दूध पाने की कोई कितनी ही तीव्र अभिलाषा क्यों न रखे, पर बांझ गाय से कभी दूध नहीं मिल सकता है । — सूत्रकृताङ्ग - निर्युक्ति (५२) को कल्लाणं निच्छाई । विश्व में कौन ऐसा है जो अपना कल्याण न चाहता हो । कहाँ अन्धा और कहाँ पथ अंधो कहिं कत्थs देसियत्तं । - प्रदर्शक | जस्सेव पभावुम्मिल्लिताई तं चेव कुमुदाई अप्पसंभावियाई चंद - वृहत्कल्पभाष्य ( १९४४ ) स्त्री का आभूषण तो शील और लज्जा है । नहीं बढ़ा सकते हैं । - वृहत्कल्पभाष्य (३२५३) जिस चन्द्रमा की ज्योत्स्ना के द्वारा कुमुद प्रस्फुटित होता है, हन्त ! वे ही कृतघ्न होकर सौन्दर्य का प्रदर्शन करते हुए विकसित अवस्था में उसी जनेता चन्द्रमा का उपहास करने लग जाते हैं । Jain Education International 2010_03 - बृहत्कल्पभाग्य ( ३२५३ ) हयकतरघाईं । उवहसंति । - बृहत्कल्पभाष्य ( ३६४२ ) भूसणं भूयते सरीरं, विभूषणं सील हिरी य इथिए । बाह्य आभूषण उसकी शोभा - बृहत्कल्पभाष्य ( ४३४२ ) कण्हुई । [ १८८३ न य मूलविभिन्नए घड़े, जलमादीणि घले For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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