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________________ पढ़ लेने से धर्म नहीं होता, पुस्तक और पीछी से धर्म नहीं होता, किसी मठ में रहने से भी धर्म नहीं हैं और केशलुञ्चन से भी धर्म नहीं कहा जाता । जो राग और द्वेष दोनों का परित्याग कर अपनी आत्मा में वास करता है, उसे ही अर्हन्त ने उत्तम धर्म कहा है जो मोक्ष प्रदायक है । - योगसार, योगेन्दुदेव ( ४७-४८ ) जहा पोमं जले जायं, नोव लिप्पइ वारिणा । एवं अलितो कामेहि, तं वयं बूम माहणं ॥ ब्राह्मण वही है, जो काम भोग के वातावरण में रहने पर भी उनसे निर्लिप्त रहता है । जिस प्रकार कमल जल में रहने पर भी उससे लिप्त नहीं होता । - उत्तराध्ययन ( २५ / २६ ) न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण वंभणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसखीरेण न तावसो । सिर मूंड लेने मात्र से कोई श्रमण नहीं होता, 'ओम' का जप करने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता, केवल अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता और कुश का चीवर पहनने मात्र से तापस नहीं होता है । - उत्तराध्ययन ( २५ / २६ ) समयाए समणो होइ, बम्भचैरेण बंभणो । नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो || समभाव से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है, तप और से तापस होता है । - उत्तराध्ययन ( २५/३० ) कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खन्तिओ । वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवs कम्मुणा ॥ मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है । Jain Education International 2010_03 - उत्तराध्ययन ( २५ / ३१ ) [ ६७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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