SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२२ शब्दरत्नमहोदधिः। [आव्य-आशा आव्य त्रि. (अवेर्मेषस्य विकारः) धेटा सं.iजा. दूध, | आशङ्का स्त्री. (आ+शकि+अ) भय, त्रास, मनिष्ट वाणवणे३. ३५. थितन, सारी रीते. २., संघड - नष्टाशङ्का आव्याध पु. (आ+व्यध्+घञ्) सा३. शत. पीउ, हरिणशिशवो मन्दमन्दं चरन्ति -श० ११६ દુઃખ દેવું. आशङ्कित त्रि. (आ+शकि+कर्तरि क्त) १. भय आव्याधिन् त्रि. (आ+व्यध्+णिनि) सारी पेठे पी3॥२, पामेल, २. अनिष्ट ३५ कितवेस, 3. संदेडयुत, हेना२. ४. रेस.. आव्याधिनी स्त्री. (आ+व्यध्+स्त्रियां ङीप्) यो२. वाडी. आशकिन् त्रि. (आ+शकि+णिनि) .आयु.5त, सेना, सूंटामीनी टोगी. શંકાવાળું, સંદેહવાળું. आवश्चन न. (ईषत् व्रश्चनं छेदनम्) १. ५०४२ stuj, आशकिनी स्त्री. (आ+शकि+णिनि+स्त्रियां ङीप्) ૨. કાપવા યોગ્ય વૃક્ષનો પ્રદેશ, ૩. જેમાંથી યજ્ઞસ્તંભ शं.वाणी, संडवाणी... કપાય તે વૃક્ષનાં ઠૂંઠાંનો છેદેલો પ્રદેશ. आशक्य त्रि. (आ+शकि+कर्मणि ण्यत्) संदेड ४२वा आवस्क पु. (आवश्च+घञ्+कुत्वम्) २. प. યોગ્ય. અનિષ્ટ રૂપે ચિંતવવા યોગ્ય, શંકા કરવા आवीडक पु. (अव्रीडस्य निर्लज्जस्य विषयो देशः योग्य. वुञ्) नि % १२. आशङ्कय अव्य. (आ+शकि+ल्यप्) शं. ४शने, संदेड आशंस् त्रि. (आशंस्+क्विप्) ४३२, स्तुति. ४२८२. કરીને, અનિષ્ટ રૂપે ચિંતવીને. ___ (न.) 33, स्तुति... आशन पु. (अशन एव स्वार्थे अण्) अशन, वृक्ष, ते. आशंसन न. (आ+शंस् वा+क्युन्) १. उथन, નામનું એક ઝાડ. २. , आशंसा शहनो अर्थ हुमी आशन त्रि. (अश्+णिच्+ल्युट) मो४न ४२॥4॥२. आशंसन न. (आ+शंस्+ल्युट) नलि मणेलने मेजवानी आशन त्रि. (अशनिजीवी स्वार्थे अण्) 4. 64.२ २७. ___ वना२. आशंसा स्त्री. (आ+शंस्+अच्) नहि भणेसने भगवान.. आशन पु. (अशनिरेव प्रज्ञा० अण्) 4.%. ४२७1, छित. विषयनी ॥u, sial -निदधे आशय पु. (आ+शी+अच्) १. समाय विजयाशंसां चापे सीतां च लक्षणे -रघु० १२।४४ -तच्चालोक्याशयं बुद्धवा तस्य सोऽपि वसन्तकः आशंसित न. (आ+शंस्+क्त) ७५२नो श६ एम. -कथास० १२. तरङ्गे, २. आधार -विषमोऽपि (त्रि.) यास, मा२.. विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसामिवाशयः-कि० २।३, आशंसितृ त्रि. (आ+शंस्+तृच्) मावि. शुमनी. 3. वैभव, ४. ३५सनु, काउ, ५. स्थान, 5. वासना३५ २७वाणु, २७ ४२नार, मावान. सं२७२, ७. माशयवाणु, ८. वित्त- अहमात्मा आशंसिन् त्रि. (आ+शंस्+णिनि) 6५२नी अर्थ. शुभओ. गुडाकेश ! सर्वभूताशये स्थितः-भग० १०।२०, आशंसु त्रि. (आ+शंस्+उ) 6५२नो अर्थ हुमो. ८. मन, १०. शयन, ११. ५थारी, १२. डीह।२, -लक्ष्मीपुंयोगमाशंसुः -भट्टिः । ૧૩. બૌદ્ધ મતે આલયવિજ્ઞાન-રૂપવિજ્ઞાન સંતાન, आशंस्त त्रि. (आ+शंस्+क्त) स्तुति ४२॥येत. १४. माश्रय- वायुर्गन्धानिवाशयात् -भग० १५१८, आश पु. (अश् भोजने घञ्) मोन, प्रात: 3 ૧૫. પશુઓને પકડવાનો ખાડો, ૧૬. હર કોઈ સાયંકાળનું ભોજન, તે તે વસ્તુનું ભક્ષણ કરનાર. 32. -आस्ते परमसंतप्तो नूनं सिंह इवाशये -महा० । आशक त्रि. (अश्नाति अश्+ग्वुल्) (मक्षा १२॥२, आशयाश पु. (आशयमाश्रयमश्नाति अश्+अण्) भनि. ભોગવનાર, ભોગયુક્ત, ભોગ સંપાદક. आशर पु. (आ+शृणाति आ+शृ+अच्) अग्नि, राक्षस, आशक्त त्रि. (सम्यक् शक्तः) सारी. तिवाणु, अत्यंत वायु. શક્તિયુક્ત.. आशव न. (आशोर्भावः अण) शीघ्रता, Blam, आसव.. आशकनीय त्रि. (आ+शकि+अनीयर्) .. ४२ आशा स्त्री. (आ+अश्+अच्) १. ६, २. तीन યોગ્ય, અનિષ્ટ રૂપે ચિંતવવા યોગ્ય. Ausial, 3. तृष्॥ -आशा हि परमं दुःखं नैराश्यं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016067
Book TitleShabdaratnamahodadhi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktivijay, Ambalal P Shah
PublisherVijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages864
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy