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________________ आर्यश्वेत-आलक्षि] शब्दरत्नमहोदधिः। ३१३ आर्यश्वेत पु. (आर्य श्रेष्ठ श्वेतं धरितं यस्य) सहायारी, | आर्षभ त्रि. (ऋषभस्येदं अण्) MED, E संध.. સારા ચરિતવાળું. आर्षभ न. (ऋषभस्येदं अण्) हैनाना प्रथम तीर्थ.४२ आर्यसत्य न. (आयं च तत् सत्यं च) Gट सत्य, | महेवन, यरित्र. અલૌકિક સત્ય. आर्षभि पु. (ऋषभस्य अपत्यं पुमान् इञ्) मनो आर्यहलम् अव्य. (आय्य हन्ति हन्+3 तस्मिन् लीयते । पुत्र, में, यता २%81.. ली वा. डमु) Met२, २ल्म.. आर्षभी स्त्री. (ऋषभस्येयं प्रिया अण् डीप्) वय आर्यहृद्य ने. (आर्येभ्यः धम्) में व्यतिमानले नामनी वनस्पति. રૂચિકર હોય તે. आर्षभ्य पु. (ऋषभस्य प्रकृतिः ज्य) महनी योग्यता आर्या स्त्री. (a+ण्यत्) १. पावत:वी, २. सास, પહોંચેલો વાછરડો, કામમાં લઈ શકાય એવો અગર 3. श्रेष्ठ स्त्री, ४. ते मामलो. छ-भात्रावृत्त. - સાંઢ બનાવીને છૂટો મૂકી શકાય એવો વાછરડો. -यस्याः प्रथमे पादे द्वादशमात्राः तथा तृतीयेऽपि । आर्षिक्य न. (ऋषिकस्य भावः यक्) पिनो धर्म.. अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या- श्रुत० आर्षिषेण पु. (ऋषिषेणस्य गोत्रापत्यम् अञ्) विषा आर्यागीति स्त्री. (आर्या गीतिरिव) ते नमनी मे. | ઋષિનું ગોત્ર સંતાન. छह. आर्षेय पु. (ऋषिरेव ढक्) १. मंत्रष्टा, २. ३६६ष्या, आर्यावर्त पू. (आर्या आवर्तन्त अत्र आ+खत+आधारे ऋषि, मा६२९॥य, महानुभाव. घज्) मायावत्त ४२, श्रेष्ठ माने उत्तम. दोन | आर्षय न. (ऋषीणां समूहः ढक्) गौचना प्रवत નિવાસસ્થાન–ખાસ કરીને આ ભૂમિ પૂર્વી સમુદ્રથી મુનિને ભિન્ન કરનાર ઋષિગણરૂપ એક પ્રવર. सन पश्चिमी. समुद्र सुधा ulc. म.४ मी. आर्टिषेण पु. ते. ना.म.नो. यंद्रवंशी. मे. २०%t.. ઉત્તરે હિમાલય અને દક્ષિણમાં વિધ્ય પર્વત છે તે. आर्टिषेणाश्रम न. (आष्टिषेणस्याश्रमम्) ते नामर्नु -आसमुद्रात् तु वै पूर्वादासमुद्राच्च पश्चिमात् । | तीर्थ तयोरेवान्तरं गिर्योः (हिम-विन्ध्ययोः) आर्यावर्त | आर्हत त्रि. (अर्हतः इदम् अण्) हैन संबंधी, छैननु. विदुर्बुधाः ।। -मनु० १०॥३४. (न.) छैनमत, छैन सिद्धांत. आर्याविलास पु. (आर्याणां-प्राकृतभाषायुतमात्रावृत्तानां आर्हन्ती स्त्री. (अर्हतो भावः ष्यञ् नुम ङीप् यलोपः) __ विलासो बाहुल्यं यत्र) ते नाम से प्राकृत. व्य. | योग्यता. आर्याविलास पु. (आ-या दुर्गायाः विलासः) हुवान आर्हन्त्यम् न. (अर्हतो भाव: ष्यञ् नुम डीप् यलोपः) विदास.. योग्यता -आर्हन्त्यं प्रणिदध्महे-सकलाऽर्हत् ११ आर्ष त्रि. (ऋषेरिदम् अण्) *षिसंoil, ऋषि . आर्हायण पु. (अर्हस्य अपत्यम् अश्वा० फञ्) सड आर्ष पु. (ऋषिणा जुष्टम्) ३६. नमवणाधिनु गोत्र५त्य. (स्त्री.) (स्त्रियां ङीप्) आर्ष त्रि (ऋषिर्वेदः तस्येदं अण्) वहन, व संधी. ___ आर्हायणी. आर्ष पु. (ऋषि+अण्) ते. नामना 206 157. पै.डी. आहीय पु. (अर्हमभिव्याप्य अहँ तत्र विहितः तस्येदं में विवाह भ न्यानो पिता २ त२३थी और वा छ) व्या४२५॥स्त्र प्रसिद्ध कि.२म डेटो असो .आयो भेगवे.छ -आदायार्षस्तु गोद्वयम प्रत्यय. -याज्ञ० ११५९ - आल न. (आलति-भूषयति आ+अल्+अच्) पाणी आर्ष न. (ऋषीणां समूहः प्रवरगणभेदः अण्) प्रवत 3.५७, ७२ताल, (त्रि.) थोडं नलित, श्रेष्ठ, पुष्७१, મુનિઓમાં વ્યાવર્તક પ્રવર ઋષિઓનો સમૂહ. घ, iनी anal, माछा बगेन ६i. आर्षधर्म पु. (आर्षो धर्मः) ऋषि मुनिमा ४८ आलक्षि त्रि. (आलक्ष्+इन्) 800२, sluti, tel धर्म. ना२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016067
Book TitleShabdaratnamahodadhi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktivijay, Ambalal P Shah
PublisherVijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages864
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size23 MB
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