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________________ अव्यायाम-अशन शब्दरत्नमहोदधिः। २२३ ११. संयोग अ.ने. १२. विमा छ. सेने. पाशि: | अव्रत्य त्रि. (व्रताय हितम् यत् न. त.) व्रतने ति२७ ગુણો પણ કહે છે, અને કાલિક અવ્યાખવૃત્તિગુણો | નહિ તે. ३५ वगेरे छे. अश् (स्वा. आ. सक. वेट् अश्रुते, अशित, अष्ट) अव्यायाम पु. (न व्यायामः) १. परिश्रमनी अभाव, વ્યાપવું, સારી રીતે એકઠું થવું અગર ભરવું, પ્રવેશ કસરત વગેરેનો અભાવ, ૨. વિશેષ કરીને વિસ્તારનો ४२वी. खं प्रावृषेण्यैरिव चानशेऽब्दैः भट्टि. २।३०, अभाव. २. पाय, j, Alaj, &0°४२ थ, भगवj, अव्यायाम त्रि. (न व्यायामो यस्य) १. परिश्रम २डित, सर्वमानन्त्य मश्रुते - या० १।१६१, 3. अनुभव કસરત નહિ કરનાર, ૨. વિશેષ કરીને વિસ્તાર રહિત. भगवनी -अत्युत्कटैः पाप-पुण्यैरिहैव फलमश्नुते-हि० अव्यावर्त्तक त्रि. (न व्यावर्त्तयति न+वि+आ+वृत्+णिच् १८० ण्वुल्) १. अन्यथा निबंध नलि ४२॥२, अन्यथा. अश् (क्रयादि. पर. सक. सेट् अश्नाति, अशित) मो.न. ભિપણું નહિ કરનાર. २, मा. -निवेद्य गुरवेऽश्नीयात् - मनु० १५१ अव्यावर्त्तन न. (न+वि+आ+वृत्+णिच्+ ल्युट) | अशकुन पु. न. (अप्रशस्तं शकुनम्) अ५शन, બીજાથી જુદું નહિ કરવું. मानिष्ट-सूय निमित, राम शकुन. अव्यावर्त्तन त्रि. (न+वि+आ+वृत्+णिच्+ल्युट) अशकुम्भी स्त्री. (अश्रुते व्याप्नोति अश्+अच् વ્યાવૃત્તિ-ભેદ રહિત. स्कुम्भ+टच्) ५.नी. ७५२ यतुं . तनु तु.. अव्याहत त्रि. (न विशेषेन आहतः) व्याघात. २डित, अशक त्रि. (न शङ्का यस्य) १. in. विनानु, નહિ અટકેલ, અલના નહિ પામેલ, તૂટેલું ન હોય, २. निय. जाधारित. -यस्य त्रिकालममलं ज्ञानमव्याहतं सदा । अशङ्का स्त्री. (न शङ्का) १. शं.51-संशयनी समाव, वेत्ति विद्यामविद्यां च स वाच्यो भगवानिति ।। २. सनो सामाव. -शब्दमाला, - भर्तुख्याहताज्ञा-रघु. १९५७. अशकित त्रि. (न शङ्कितः) १. निलय, २. संघ अव्याहत न. (न व्याहतं-मिथ्यार्थकम) सत्य वास्य. २डित, नि:शं -प्रविशत्यशङ्कः - हि० १. ८१ . अव्याहतत्व न. (अव्याहतस्य भावः त्व) व्याघातनो. અભાવ, વાણીનો એક ગુણ. સુરક્ષિત. अव्युत्पन्न त्रि. (न+वि+उद्+पद्+क्त) १. व्युत्पत्ति अशक्त त्रि. (न शक्त) असमर्थ, 15 ५९आय. કરવામાં અયોગ્ય. રહિત, અવયવાર્થ રહિત શબ્દ, ૨. શબ્દોના અવયવાર્થને નહિ જાણનાર, ૩. વ્યાકરણશાસ્ત્રને નહિ अशक्तता स्त्री. (अशक्तस्य भावः तल्) सशस्तuj, જાણનાર, પલ્લવગ્રાહી ભાષાશાસ્ત્રી, અનુભવ રહિત, सा , अयोग्यता, असमर्थ५.. दुशण, भाव्यवहार. -अव्युत्पन्नो बालभावः-काद० अशक्तत्व न. (अशक्तस्य भाव; त्व) 6५२नो. अर्थ अव्युत्थिति स्री. (न+वि+उद्+स्था+क्तिन्) (१) ઉત્થાનનો અભાવ, નહિ ઊઠવું તે, ૨. વાણીનો એક अशक्ति स्त्री. (न शक्तिः) सामथ्र्यनी समाव शुए. सत. श्रमेण तदशक्त्या वा न गुणानाअवण त्रि. (नास्ति व्रणोऽस्य) ७.५॥ २डित, क्षत-घा मियत्तया-रघु० १०।३२ वगरनु. अशक्य त्रि. (न शक्यते शक्+क्यप्) न जनी ॥3 अव्रण न. (न व्रणम्) १. ते. नामनी में नेत्ररोग, ते, असाध्य, अव्यवहार्य.. २. रानो समाव. अशत्रु पु. (न शातयति शद्-ण्यर्थे त्रुन्) १. यन्द्रमा, अव्रत त्रि. (नास्ति व्रतं विहितनियमोऽस्य) ॥स्त्र. २. पूर, 3. शत्रु नलित, मित्र.. विलित-मि. नियम वगरनु, व्रत विनानु. - अशत्रु त्रि. (न शत्रुर्यस्य) ने 305 शत्रु नथी त. अवतानाममन्त्राणां जातिमात्रोपजीविनाम् । सहस्रशः | अशन. न. पु. (अश्नुते व्याप्नोति अश्+ल्युट) लियान समेतानां परिषत्वं न विद्यते ।। मन० १२।११४. जा. मो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016067
Book TitleShabdaratnamahodadhi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktivijay, Ambalal P Shah
PublisherVijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages864
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size23 MB
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