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________________ १७२ शब्दरत्नमहोदधिः। [अरश्मन्-अरिक्थभाज् अरश्मन् त्रि. (नास्ति रश्मिरस्य) मना होशथी। अराति पु. (न रा क्तिच्) सामे. वान स्वभावाj, રહિત રથ વગેરે, શાસન રહિત. | शत्रु, दुश्मन, नी. संध्य... अरस पु. (न रसः) १. २सनो समाव, २. स्वाइन अराति त्रि. (न रा भावे क्तिच्) हान नलि हे त. ते, 3. . २स.. अराती स्त्री. (न रा क्तिच्) १. शत्रु दुश्मन, अरस त्रि. (न रसः यस्य) २स. , स्वा६२डित, २. योतिषशस्त्र प्रसिद्ध छ स्थान, 3. छन. संध्या. नि:सार, सार सरनं. अरातीयु त्रि. (अराति+क्यच्+उ) शत्रुना है, आय२५. अरस त्रि. (न रसं वेत्ति अच्) २. एन८२ नहित. ____२८२, शत्रुनी पेठे वतन२. अरसिक त्रि. (न रसिकः) २सि नहित, २सने नलि अरातीवन् त्रि. (अराति-मत्वर्थीयो वनिप्) 6५२न. एन२, , भंह. -अरसिकेषु कवित्वनिवेदनं अर्थ शुभा. शिरसि मा लिख मा लिख मा लिख-उद्भटः अराधस् त्रि. (राधः-धनं तन्नास्ति यस्य) धन. २डित, अरसिकता स्त्री. (अरसिकस्य भावः तल) २सिप निधन, अनुहार, 38ोर, स्वाथा. નહિ તે. अरान्तर पु. (अराणामन्तरालं यस्य) सरोन अंतराल. अरसिकत्व न. (अरसिकस्य भावः त्व) 6५२नो अर्थ अराय त्रि. (नास्ति राः धनं यस्य वेदे षच्) १. निधन, (मो. ૨. યજ્ઞ વગેરેમાં દાન નહિ આપનાર. अरहित त्रि. (न रहितः) सहित. अरायी स्री. (नास्ति रायो दानं यस्याः स्त्रियां ङीप्) अराग पु. (न रागः) १. २।।-स्नेडनो अभाव, યજ્ઞમાં દાન નહિ આપનારી સ્ત્રી. २.२४न नहित. अराल त्रि. (ऋ विच अरम आ+ला+क) dis. अराग त्रि. (न रागः यस्य) २२॥ २डित, स्ने शून्य, अराल पु. (अर आ+ला+क) १. bist &ाथी, वि२d. अरागद्वेष पु. (न स्तः राग-द्वेषौ यत्र) यां. द्वेष २. ६५, 3. aist. . नथी, साति-विति. शून्यता.- नियतं सङ्गरहित अरालकेशी स्त्री. (अरालाः केशाः यस्याः) Missil मरागद्वेषतः कृतम् । -गीता १८।२३ । वावाजी स्त्री- भित्त्वा निराक्रमदरालकेश्याः - अरागिन् त्रि. (न रागी) 6५२नो अर्थ हुमो. २७. रघु. ६८१ नहिते, वि . अरालपक्ष्मन् त्रि. (अरालं पक्ष्म यस्य) dist अराजक त्रि. (नास्ति राजा यत्र कप्) २२% विनानी ५८-५inागो. देश को३, मिश -अराजके हि लोकेऽस्मिन् सर्वतो | अराला स्त्री. (अर आ+ला+क+टाप्) वेश्या स्त्री, विद्रुते भयात् - मनु० ७।३. अराजन् पु. (न राजा) ले २०%. न. डोय ते. अरावन् त्रि. (रा+वनिप् न.त.) महात, हान नलि अराजन्य पु. (न राजन्यः) क्षत्रिय नलित. मापना२. अराजभोगान त्रि. (न राज्ञः भोगीनः) रान आर्यभi | अरि पु. (ऋ इन्) १. शत्रु, २. २थर्नु-अंग पैड, __ अनुपयोगी. 3. . तनी २, ४. म. ओघाहि शत्रुभो, अराजस्थापित त्रि. (राज्ञा न स्थापितः) २... प्रतिष्ठित । ५. ५२मेश्वर, 5. छनी संज्या, ७. ज्योतिषशास्त्र न यो डोय, २.४ायहे. પ્રસિદ્ધ છઠું સ્થાન. अराजिन् त्रि. (राजा नास्ति अस्य इनि न. त.) | अरि त्रि. (ऋ इन्) प्रे२९॥ १२॥२. १. ठेनो भules २५% नथी. त, २. अति. २डित, | अरिकर्षण त्रि. (अरीणां कर्षणं कृतं येन) शत्रुझानो 3. निस्ते४. પરાજય કરનાર. अराजीव पु. (अर आ+जीव+अण्) १. २५.७८२, अरिकुल न. (अरीणां कुलम्) शत्रुमोनो. समूड. २. सुथार. अरिक्थभाज् त्रि. (रिक्थं पित्रादिदानं न भजते भज्+ण्वि) अराजीव त्रि. (न राजीवं यत्र) भ. विनानु सरोवर. पिता वगैरे.. मिलानो मान1ि0.. दुसटा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016067
Book TitleShabdaratnamahodadhi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktivijay, Ambalal P Shah
PublisherVijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages864
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size23 MB
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