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________________ प्रथमकाण्डम् पुंसि प्रेमी तथा स्नेहः प्रेम हार्दे तु न द्वयोः । चित्त विभ्रान्ति रुन्मादः स्यादाधिर्मनसो व्यथा ||२२|| कामे तर्षोऽभिलाषश्चाऽत्यभिलाषस्तु लालसा । वाञ्छा स्पृच्छाकांक्षेहा लिप्सा दोहो मनोरथः ॥ २३ तृड़थोत्कलिकोत्कण्ठाssध्यानं तूत्कण्ठ्या स्मृतिः । दम्भो व्याज छलं छद्म कैतवं कपटोऽस्त्रियाम् ॥२४॥ निकृति: कुसृतिश्चापि शठतायां तु केचन । कुतुकं कौतुकं चित्रं कौतूहल कुतूहले ॥२५॥ उत्साहोऽध्यवसायः स्यात्प्रमादोऽनवधानता । स्वेदे' घर्मो निदाघश्चावैहित्थाऽऽकारगोपने ॥ २६ ॥ हिन्दो - ( १ ) प्रेम के चार नाम - प्रेमन १ स्नेह २ पु० प्रेमन् ३ हार्द ४ नपुं० । ( २ ) चित्तभ्रान्ति को 'उन्माद' कहते हैं पु० । (३) मन के व्यथा को 'आधि' कहते पु० हैं । (४) काम के तीन नाम - काम १ वर्ष २ अभिलाष ३ पुं० । (५) अति अभिलाषा को 'लालसा' कहते हैं त्रो० । (६) वाञ्छा के नौ नाम - वाञ्छा १स्पृहा २, इच्छा ३ आकांक्षा (कांक्षा ) ४, ईहा ५, लिप्सा ६, तृष् ७ स्त्री०, दोह ८, मनोरथ ९ पु० । (७) उत्कण्ठा के दो नाम उत्कलिका १ उत्कण्ठा २ स्त्री० । (८) उत्कण्ठा के साथ स्मृति को 'आध्यान' कहते हैं नपुं. । ( ९ ) कपट के नव नाम - दम्भ १, व्याज २ छल ३, छद्म ४, कैतव ५, कपट ६ अस्त्री०, निकृति७ कुसृति ८, शठता ९ स्त्री । (१०) कुतुहल के पांच नाम - कुतुक १, कौतुक २ चित्र ३, कौतुहल ४ कुतूहल ५ नपुं० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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