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________________ प्रथमकाण्डम् नृत्यवर्गः ७ केचिन्मालवमल्लारौ श्रीरागश्च वसन्तकः ॥५॥ हिन्दोलश्चापि कर्नाट इति रागान् प्रचक्षते । उच्चस्तारोऽथ गम्भीरे मन्द्रः स्यान्मधुरेऽस्फुटे ॥६॥ कल स्तस्मिन् कले सूक्ष्मे काली स्वर ईर्यते । एकतालस्तु गीतस्य सामस्त्ये लयवाधयोः ॥७॥ विपश्ची वल्लकी वीणा सप्तभिः परिवादिनी। तन्त्रीमि धि वीणादि ततं स्यान्मुरजादिकम् ॥८॥ आनद्धं सुषिरं वेणुः कांस्यघण्टादिक धनम् । वाद्य वादित्रतोद्यानि चतुर्णा नाम गीयते ॥९॥ हिन्दोल राग की दीपिका १ देशकारी २ मायूरी ३ पाहिडी ४ मोरहाडी ५ वराडी ६ स्त्री० । कौशिक राग की कामोदा १ रामकेली २ भूपाली ३ नाटिका ४ गडा ५ कल्याणी ६ स्त्री० । हिन्दी-(१) कितनेक गायनाचार्यों के मत से छ राग हैं उनके नाम-मालव १, मल्लार २ श्रीराग ३ वसन्त ४ हिन्दोल ५ कर्नाट ६ । (२) उच्चस्वर को 'तार' कहते हैं पु० । (३) गम्भीर स्वर को 'मन्द्र' कहते हैं पु० । (४) मोठे और स्फुट स्वर को 'कल' कहते हैं पु० । (५) मीठा और अस्फुट सूक्ष्म कल को 'काकली' कहते हैं स्त्री० । (६) जिस गाना में गीतवाद्यलय समानरूप से संचारित हो उसे 'एकताल' कहते हैं पु० । (७) वीणा के तीन नाम-विपश्ची १ वल्लकी २ वोणा ३ स्त्री० । (८) साततार वाली वीणा को 'परिवादिनो' कहते हैं स्त्री० (९) वाचवीणादिको 'तत' कहते हैं नपुं० । मुरज आदि को 'आनद्ध' कहते. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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