SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयकाण्डम् ३५७ लिङ्गादिनिर्णयवर्ग: ५ उणादावी निरुश्चोक्त ऊङ् ड्यावन्तं स्थिरं चलम् । प्रहरणं तत्क्रीडायां दाण्डा मौष्टा णदिक् स्मृता ॥७॥ सा क्रियाऽस्यां घना बः स्याद् दाण्डापातातिथिः स्मृता । मृगया स्यैनंपातास्यात् तैलंपाता स्वधा स्मृता ॥८॥ विवक्षाऽपचये चेत् स्त्री मृणाल्यादि रुदाहृता । युच्-कारणा, कामना, क्यपू-बज्या, इज्या, समज्या, निषद्या अङ भिदा, छिदा, इब कारिः गणिः निः ग्लानिः हानिः म्लानिः श-- 'क्रिया, इच्छा; अ-चिकीर्षा, ईहा, ऊहा इत्यादि । (१) उणादि गण में ई प्रत्यय निप्रत्यय ऊ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रोलिङ्ग होते हैंजैसे-अवोः, तरी:, श्रेणिः, श्रोणिः, चमूः इत्यादि, अङ्-ङी आपू प्रत्ययान्त-वामोरुः गौरी, रमा इत्यादि स्त्रीलिङ्ग है। (२) प्रहरण अर्थ में क्रीडा के लिए प्रत्युक्त ण प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग होते हैं जैसे-दण्डा मौष्टा इत्यादि । (३) 'दण्डपात इस तिथि में है' इस अर्थ में घनन्त क्रिया वाचक दण्डपात शब्द से स्त्रीलिङ्ग में अप्रत्ययान्त 'दण्डपाता तिथिः' ऐसा प्रयोग होता है । (४) श्येनपात इस मृपया में है ।। इस अर्थ में घञन्त क्रियावाचक श्येनपात शब्द से स्त्रीलिङ्ग में प्रत्ययान्त 'श्यैनपाता मृगया' ऐसा प्रयोग होता है । (५) 'तेलपात इस स्वधी में हैं। इस अर्थ में घनन्त क्रियावाचक तेलपात शब्द से स्त्रीलिङ्ग में अप्रत्ययान्त 'तैलं पाता स्वधा' ऐसा प्रयोग होता है। (६) अल्पता की विवक्षा करने पर मृगालो आदि से कुम्भा, प्रणाली, मुसली, पटो, तटी इत्यादि प्रयोग स्त्रीलिङ्ग में होता है । छोटा मृणाल, छोटा घड़ा, छोटो नालो, छोटा मुसल, छोटा कपड़ा' छोटा तट ऐसा अर्थ होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy