SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयकाण्डम् नानाथवर्गः ३ भ द्योत दृष्टिषु ज्योतिः' खं नमः श्रावणे नभाः।२४७॥ वयः खगेऽपि बाल्यादा वेधा विष्णौ च रोदेसी । रोदस्यौ चाऽपि भू द्यावौ प्रसरश्वाऽप्यथो रजः ॥२४॥ स्त्रीपुष्पे च गुणे, बों रूपे तेजः पुरीषयोः । विदेन विद्वान् निम्न गाया वेगे स्रोत स्तथेन्द्रिये।।२४९॥ तमो राहौ गुणे ध्वान्ते सही मार्गः सहोबले । अचिर्मयुखं शिखयो नैना चौर्यादि कर्मणि ॥२५॥ (१) 'ज्योतिस अग्नि दिवाकर में पु०, दृष्टि नक्षत्र प्रकाश में नपुं०। (२) नभस्' व्योम में नपुं०. श्रावण मेघ घ्राण वर्षा विप्ततन्तु पतद्गह (पात्र)में पु०, नभस अदन्त भो है 'नभसः पुसि' इत्युणादि वृत्ती (नभसस्तु) नदी पतौ। गगने प्रावृषि ।।) । (३) 'वयस्' पक्षी वाल्य पौगण्ड कैशोर तारुण्य वार्धक में पुं० । (४) 'वेधस्' हृषीकेष बुध परमेष्ठी में पु० । (५) 'रोदसी रोदस्यो' संमिलित पृथ्वी आकाश में रोदस् द्विवचनान्त नपुं० स्त्री० । (६) 'प्रसू' जननी कदली लता अश्वा में स्त्री० । (७) 'रजस्' स्त्रीपुष्प (आर्तव) गुणान्तर पराग रेणुमात्र में नपुं०, रज शब्द अकारान्त भी है (रजोऽयं रजसा साधै स्त्रीपुष्पगुणधूलिषु, अजयः) । (८) 'वर्चस्' रूप तेजस् विष्ठा बोधक नपुं०, चन्द्रतनय में पु० । (९) 'विद्वस् (विद्वान् विद्वन्)' आत्मवित् प्राज्ञ पण्डित में त्रि० । (१०) 'श्रोतस्' अम्बुवेग इन्द्रिय में नपुं० । (११) 'तमसू' वान्त गुण शोक में पु० नपुं, विधुन्तुद में पु० । (१२) 'सहस्' बल ज्योतिसू में नपुं०, हेमन्त ऋतु में और मार्गशीर्ष महिने में पु० । (१३) 'अर्चिस' मयूम्ब और शिखा में प्रायः नपुं० पु. नहीं। (१४) 'हिंसा' चोरकर्म बन्धन त्रासन ताडन वध में स्त्री० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy