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________________ प्रथमकाण्डम् सुरवर्गः प्राणवायोः पञ्च वेगस्य पञ्च, शीघ्रस्यैकादश, निरन्तरस्य, नवनामानि - ! २० व्यानः सर्वशरीरेऽन्तः प्राणोऽपानो गुदस्थळे ॥५७॥ समानो नाभिदेशेस्या, दुदानः कण्ठसंस्थितः । क्ल । वे रंस्तरः पुंसि जवो वेगो रयः स्यदः || ५८ || अथ शीघ्रमैंरं क्षिप्रं चपलं सत्वरं द्रुतम् । त्वरितं लघु तद्वत्स्या- तूर्णमाश्व विलम्बितम् ॥ ५९ ॥ संतताऽविरताऽश्रान्त सतताऽनारताऽनिशम् । नित्याऽनवरताऽनस्त्रं नस्त्री नैव पुमान् क्वचित् ॥ ६०॥ गन्धवह ८, गन्धवाह ९, समीरण १०, समीर ११, आशुग १२ वायु १३, जगत्प्राण १४, प्रभञ्जन १५, नभस्वान् ( नभस्वत्) १६, श्वसन १७ पु० (२) वर्षा के साथ चलते वायु का एक नाम - झंझावात १ पु० (३) उग्रवायु के दो नाम - प्रकम्पन १, उपवात २ पुलिङ्ग । (१) प्राण वायु के पांच मेद हैं-व्यान १ समस्त शरीर में, प्राण २ अन्तः शरीर में, अपान ३ गुद देश में समान ४ नाभिदेश में, उदान ५ कण्ठदेश में स्थित है पु० । (२) बेग के पांच नाम - रंह (रहस्) १ तर (तरस) २, नपुं० जब ३, वेग ४, रय ५, स्यद ६, पुंलिङ्ग । (३) शीघ्र के ग्यारह नाम - शीघ्र १, अर २ क्षिप्र ३, चपल ४, सत्त्वर ५, द्रुत ६, त्वरित ७, लघु ८, तूर्ण ९, आशु १०, अविलंबित ११ नपुं० । ( ४ ) निरन्तर के नौ नाम संतत १, अविरत २, अत्रान्त ३, सतत ४, अनारत ५, अनिश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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