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तृतीयकाण्डम्
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नानार्थवर्गः३ तत्त्वभेदे स्त्रियां वीणा भेदे माज्ये नपुंसकम् ॥८५॥ वृत्तेऽन्यलिङ्गं वृत्तं तु छन्दश्चारित्र वृत्तिमु । त्रिषु रूप्ये सिते हेम्नि रजतं सलिले घृतम् ॥८६॥ अमृतं कलधौतं तु रूप्य हेम्नोः कृत युगे। पर्याप्तेऽपि श्रृंत शास्त्रे चाऽवधारण कर्मणि ॥८॥
'निमित्तं लक्षणे हेतौ रक्तं नील्यादि रागिणि। क्लीवं खगादि सवादी स्त्री करिण्योस्तु "वासिता 1८८॥
फल्गु न्यरोगयो वर्ति वृत्तौ वार्ता जनश्रुतौ । (१) महती' तत्वभेद में पु० [महान] है, वल्लकी वोणा] भेद में स्त्री०, राज्य प्राज्य में नपुं, श्रेष्ठ वृद्ध में विशेष्यलिङ्ग । (२) 'वृत्त' अधीत अतीत वर्तुल मृत वृत्त स्वीकृत] में पु०, और वृत्त में [सम्पन्न में अन्यलिङ्ग छन्द चारित्र वृत्ति में नपुं० । (३) 'रजत' रूप्य सित हेमन् रञ्जन शोणित हृद हार में त्रि०। (४) 'घृत' माज्य जल में नपुं०, प्रदीप्त में अभिधेयवत् यज्ञशेष पोयूष सलिल घृत अप जिन में चित मोक्ष में नपुं, और देव जिन धन्वन्तरी में अमृत में पु० । (५) कलधौत' सुवर्ण रजत में नपुं० । (६) 'कृत' युग पर्याप्त में नपुं०, विहित हिंसित में त्रि० । (७) 'श्रुत' शास्त्र और अवधृति में नपुं०। (८) निमित्त हेतु और लक्षण में नपुं० । (९) क' अनुरक्त नोल्यादि रखित लोहित में त्रि०, कुंकुम ताम्र प्राचीनामलक असृक् में नपुं। [१०] 'वासिता' खाराव ध्यानमात्र सुरभीकृत वस्त्रवेष्टित में नपुं, करिणी नारी में स्त्री० (स्वामोके मत से वाशिता' तालव्यान्त है] । (११) 'वार्ता' नीरुन नोरोगि वृत्तिमान् में पु०, फल्गु अरोंग में नपुं० वातिङ्गण वृत्ति जनश्रुति वार्ता कृष्णाधुदन्त में स्त्री० ।
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