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________________ २९५ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ काके-भगण्डौ करटो नागगण्डे कटौ कटः । कैतवाऽनृत मायासु यन्त्र निश्चल राशिषु ॥४३॥ सीराङ्गे शैलशृङ्गे चाऽयोघने कूटमस्त्रियाम् । रिष्टं स्यादशुभाभावे पुंसि फेनिलखङ्गयोः॥४४॥ इति टान्ताः । नीलकण्ठः सितापाले हरेऽपि पीतसारके । दात्यूहे कलविङ्के च खञ्जने कालकंठवत् ॥४५॥ कोष्ठोऽन्तर्जठरे पुंसि कुसूलेऽन्त,हे स्वके । युवाऽल्पयोः कनिष्ठोना कनिष्ठा दुर्बलाङ्गुलिः ॥४६॥ नक्षत्रे गृहगोधायां ज्येष्ठा मासान्तरे पुमान् । त्रिषु श्रेष्ठे च वृद्धे च काष्ठोत्कर्षे दिशिस्थितौ ॥४७॥ हिन्दी-(१) काक इभगण्ड कुसुम्भ निन्द्य जीवन एकादशाहादिश्राद्ध दुर्दरूढ वाद्यमेद मर्थ में 'करट' पु० । (२) श्रोणि नितम्ब अर्थ में 'कट' स्त्री०पु०, क्रियाकार कलिज अतिशय शव समय गजगण्ड कपोल में पु० । (३) कैतव अनृत माया यन्त्रनिश्चल राशि सीराङ्ग शैलशृङ्ग अयोधन अर्थ में 'कूट' नपुं० । (४) अशुभाऽभाव (शुभ) अर्थ में 'रिष्ट' नपुं, फे ने छ खा में पु०। इति टान्ताः । (५) 'नीलकण्ठ और कालकण्ठ' सितापाङ्ग हर पीतसारक दात्यूड कलविङ्कमें पु० । (६) 'कोष्ठ' अन्तर्जठर कुसूल अन्तगृह आत्मीय में पु०। (७) 'कनिष्ठ' युवा और अन्य अर्थ में पु. दुबलो अंगुली अर्थ में 'कनिष्ठा' (छोटी अंगुली) कहते हैं स्त्रो० । (८) 'ज्येष्ठा' नक्षत्र और गृहगोधा अर्थ में स्त्रो०, मासान्तर अर्थ में 'ज्येष्ठा' पु०, श्रेष्ठ और वृद्ध में त्रि०। (९) 'काष्ठा' उत्कर्ष और दिशास्थिति अर्थ में स्त्री० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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