SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयकाण्डम् २९० नानार्थवर्गः ३ सबले त्रिषु सारङ्गो हरिणे चातके पुमान ॥२२॥ आदित्य भूमि स्वर्गादौ ना स्त्री गौन नपुंसकम् । मृगाः पशौ कृतादौ च यानाधङ्गेऽस्त्रियां युगम् ॥२३॥ लिङ्ग चिह्नाऽनुमानादौ शृङ्ग प्राधान्य सानुनोः । गुह्य मुध्नों वराङ्गं च पतङ्गः सूर्य पक्षिणोः ॥२४॥ पराभवेऽभिषङ्गो नाऽऽक्रोशेऽथ प्लेवगः कपो । अहे: काये फणायां च भोगैः ख्यादि भृतौ मुखे ॥२५॥ (१) शबल(नानावर्ण) अर्थ में 'सारङ्ग त्रि०, हरिण चातक मतङ्गमें पु०। (२) आदित्य बलीव किरण क्रतुभेद में 'गौ' पु०, सौरभेयी (गाय) दृक् बाणादिक वाक् भू अप् समन् में स्त्री०, केशव कोष स्वर्ग वत्र अम्बु रश्मि दृक् बाण लोमन् में पु०, स्त्री. कहा है। (३)पशु अर्थ मैं कुरङ्ग करो नक्षत्र भेद अन्वेषण यज्वा में पु०, वनितामृग स्त्री में 'मृगी' है स्त्री०। (४) शब्द रथ हल आदि अंग में 'युग' पु०, कृत आदि युग्म हस्त चतुष्क वृद्धि नामन् ओषधि में नपुं० । (५) शब्द चिह्न अनुमान सख्यि को मानी हुइ प्रकृति शिवमूर्ति विशेष मेहन अर्थ में 'लिङ्ग' नपुं० । (६) प्रभुत्व शिखर चिह्न क्रीड़ा अम्बुयन्त्र विषाण उत्कर्ष में 'शङ्ग' नपुं० । कूर्च कुच्ची दाढी शीषक में पु०, विषा स्वर्ण मीन भेद ऋषभ ओषधि में स्त्री० । (७) योनि मस्तक मातङ्ग गुडत्वक (इख की छाल) अर्थ में 'वराङ्ग' नपुं० । (4) पक्षी सूर्य शलभ शालि प्रभेद में 'पतङ्ग, पु० । (९) पराभव आक्रोष (शपथ) में 'अभिपन' पु० । (१०) कपि मेक सूर्य सारथि में 'प्लवग' पु० । (११) सर्प काय फणा (पालन अभ्यवहार) स्त्री. हाथी घोड़े आदि के भरण पोषणसुखमें 'भोग' पु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy