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________________ तृतीयकाण्डम् ૨૮૨ विशेषणवर्ग:२ क्लिष्टं 'कथितनिष्पक्वे *स्वनित ध्वनिते, अथ, । विविधस्तु बहुविध नानारूप पृथग्विधाः ॥८९॥ पुष्टे स्यात्पुषितं 'संगूढेतु संकलितः स्मृतः । 'मृगिताऽन्वेशिताऽन्विष्ट मागितानि गवेषिते ॥९०॥ पक्वं परिणते सोढे क्षान्तं पूर्ण तु पूरितम् । दान्तः स्यात् शमिते हन्नगुने निष्कासिते गुदात् ९१ ध्वस्त भ्रष्ट च्युत सस्त गलित स्कन्न पन्नकाः। "निन्दिते त्ववगीतं स्याद् वृणे कृत्तं छितं दितम् ।९२। (१) पकाए गए के दो नाम-कथित १, निष्पक २। (२) अस्फुट शब्द करते हुए के दो नाम-स्वनित १ ध्वनित २ । (३) अनेक रूप के चार नाम-विविध १ बहुविध २ नानारुप ३ पृथग्विध ४ । (४) जिसका पोषण किया गया है उसके दो नाम-पुष्ट १ पुषित २ । (५) अनेक अंको के सारांश खींचकर बनाए गए एकांकी नाटक आदि के दो नाम-संगूढ १ संकलित २ । (६) अन्वेषण के पांच नाम-मृगित १ अन्वेषित २ मन्विष्ट ३ मार्गित ४ गवेषित ५ । (७) परिणाम के दो नाम-पक १ परिणत २। (८) क्षमापित के दो नाम-सोढः १ क्षान्त २ । (९) पूर्ण के दो नोम-पूर्ण १ प्रेत २ । (१०) स्वाभाविक तेज को दबाकर रखने का अभ्यासी के दो नामदान्त १ शमितः २ ! (११) निकाले गए पुरीष के दो नामहन्न १ गुन २ । (१२) च्युत (पड़ते हुए) के सात नामध्वस्त १ भ्रष्ट २ च्युत ३ स्रस्त ४ गलित ५ स्कन्न ६ पन्नक (पन्न) (१३) जन अपवोद के दो नाम-निन्दित १ अक्गीत २ नपुं०, (निर्वाद अर्थ में 'अवगीत' पु० है मेदिनी)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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