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________________ तृतीयकाण्डम् २७८ विशेषणवर्गः २ संहते दृढसन्धिः स्याद् अवाग्रेऽवनताऽऽनतौ । अतिरिक्तोऽधिकेतु स्यात्तथा समधिकोऽपि च ॥७३॥ प्रौढेधित प्रवृद्धानि प्रतनैस्तु पुरातनः । चिरन्तनः पुराणश्च प्रत्न ऐन्द्रियकं तु यत् ॥७४॥ प्रत्यक्षमिन्द्रियैर्ज्ञात मप्रत्यक्षमतीन्द्रियम् । मोघें निरथर्क व्यथं स्पष्टे प्रव्यक्त मुल्बणम् ॥७५ स्फुटं साधारणं तु स्यात्सामान्यं च निरर्गलम् निर्वाधमसहायेऽर्थे एकीकी चैक एककः ॥७६॥ ग्रन्थिले ग्रन्थि तं दृब्धं गुम्फितं संदितं तथा । (१) दृढ सन्धिवाले के दो नाम - संहत १ दृढसंधि २ । ( २ ) अधोमुख के तीन नाम - अवाग्र १ अवनत २ आनत ३ । (३) अधिक के दो नाम-अतिरिक्त १ समधिक २ | (४) वढे हुए के तीन नाम - प्रौढ १ एधित २ प्रवृद्ध ३ । (५) पुराने के पांच नाम - प्रतन १ पुरातन २ चिरंतन ३ ( चिरत्न) पुराण ४ प्रत्न ५ । (६) प्रत्यक्ष के दो नाम - ऐन्द्रियक १ प्रत्यक्ष २ । (७) अज्ञात के दो नाम - अप्रत्यक्ष १ अतीन्द्रिय २ । (८) निष्पन्न के तीन नाम-मोघ १ निरर्थक २ व्यर्थ ३ । ( ९ ) स्पष्ट के चार नाम - स्पष्ट ९ प्रव्यक्त २ उल्वण ३ स्फुट ४ (१०) साधारण के चार सामान्य २ निरर्गल ३ निर्बाध ४ । (११) असहाय के तीन नाम - एकाकी १ एक २ एकक ३ । (१२) गुथे गए के पांच नाम - ग्रन्थिल १ ग्रन्थित २ ( प्रथित) दृब्ध ३ गुम्फित ४संदित ५ नाम - साधारण १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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