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________________ - तृतीयकाण्डम् २६८ विशेषणवर्गः २ 'प्रोच्छ्रितो-दग्र प्रांशूच्च तुङ्गा, निस्तैलवर्तुले । वृत्ते वामन नीच न्यक् खर्व हस्वा अधोमुखे ॥२७॥ आनताऽवनताऽवग्रा 'नेदोयोऽत्यन्तमन्ति के । सवेश निकटाऽभ्याश समोपाऽऽसन्न पाचकाः ॥२८॥ सनिकृष्ट समर्याद- सदेश सविधानि च । संनिधानो- पकण्ठे चाऽभ्यग्रो-पान्त सनीडवत् ॥२९॥ संनिकर्षाऽन्तिकाऽभ्यः संनिधिः सविधेऽभितः। पुङ्गव-र्षभ शार्दूल-सिंह व्याघ्रादि कुजराः ॥३०॥ नृपुङ्गवादयः शब्दाः पुंसि प्राशस्त्यवाचकाः । पाः शतादयो ये स्यु स्ते संख्येयाः शतात्परे ॥३१॥ (१) ऊँचे के पांच नाम-प्रोच्छित १ उदग्र २ पांशु ३ उच्च ४ तुङ्ग ५ (मोत्तुङ्ग, उत्तुङ्ग)। (२) गोलाकार के तीन नाम- निस्तल १ वर्तुल २ वृत्त ३ । (३) छोटे (कद) के पांच नाम- वामन १ नीच २ न्यक् ३ खर्व ४ इस्व ५। (४) अधोमुख वाले के तीन नाम- आनत १ अवनत २ अवन ३ । (५) अतिसमोप का एक नाम-नेदीयम् (नेदिष्ठ) १ । (६) समीप के इकोस नाम- सवेश १ निकट २ अभ्यास ३ समोप १ आसन्न ५ पार्श्व ६ संनिकृष्ट ७ समर्याद ८ सदेश ९ सविध १. संनिशान ११ उपकण्ठ १२ अभ्यग्र १३ उपान्त १४ सनीड १५ संनिकर्ष १६ अंतिक १७ अभ्यर्ण १८ संनिधि १९ सविध २० अभितः २१ (२१ वां अव्यय हैं) । (७) पुंगव १ ऋषभ २ शार्दूल ३ सिंह ४ व्याघ्र ५ कुञ्जर ६ आदि उत्तरपद में रह कर प्रशस्त अर्थ के बोधक है जैसेनृपुंगव आदि । (८) सो से आगे के संख्येय परः शत आदि हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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