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________________ तृतीयकाण्डम् २६४ विशेषणवर्गः २ प्रसिताऽऽसत तल्लोनोत्सुकाऽऽविष्टास्तु तत्परे ॥९॥ कुटुम्बैव्यापृतोऽभ्यागारिकोऽथ निरवग्रहः । स्वैरी स्वतन्त्रः स्वच्छन्द इभ्याऽऽन्यधनिनः समाः॥१०॥ प्रभुः परिवृढ़ो नेता नायकः पतिरीश्वरः । अधिपस्वामीनौ चाऽथ संमृद्धोऽत्यधिकद्धिकः ॥११॥ श्रीलंः श्रीमांश्च लक्ष्मीवाल्लक्ष्मणश्चाऽथ वत्सलः। स्निग्धो मूकस्त्ववाक् कार्मः कर्मशालिनिर्कमठे ॥१२॥ कर्मशुरः कृपालुस्तु दयालुः सूरतस्तथा । भवेत्कारुणिको यस्तु परतन्त्रः स नाथवान् ॥१३॥ (१) कार्य में तत्पर व्यक्ति के छह नाम-प्रसित १ आसक्तर तल्लीन ३ उत्सुक ४ आविष्ट ५ तत्पर ६ । (२) कुटम्ब में आसक्त के दो नाम-कुटम्बव्यापृत १ अभ्यागारिक २ । (१२) स्वच्छन्द के चार नाम-निरवग्रह १ स्वैरी २ स्वतन्त्र ३ (अपावृत) स्वच्छन्द ४ । (४) धनवान के तीन नाम-इभ्य १ आढय २ धनी ३ । (५) मधिपति के आठ नाम-प्रभु १ परिवृढ २ नेता ३ नायक ४ पति ५ इश्वर ६ अधिप ७ स्वामी ८ । (६) अत्यन्त धनवान के दो नाम-समृद्ध १ अत्यधिकर्द्धिक २ । (७) शोभा अथवा सम्पत्ति युक्त के चार नाम-श्रोल १ श्रीमान् २ लक्ष्मीवान् ३ लक्ष्मण ४। (१७) पुत्रादि स्नेह पात्र में अभिलाष रखने के दो नाम-वत्सल १ स्निग्ध २ । (९) मूक के दो नाम-मूक १ अवाक २ । (१०) कर्मशीलके एक नाम-कार्म १ । (११) कर्मशूर के दो नाम-कर्मठ १ कर्मशूर २ । (१२) दयालु के चार नाम-कृपालु १ दयालु २ सुरत ३ कारुणिक ४ । (१३) पराधीन के चार नाम-परतन्त्र १ नाथवान् २ पराधीन ३ परवान् ४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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