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________________ द्वितीयकाण्डम् २४४ अन्त्यवर्णवर्गः ११ कुहेकं विन्द्र जालं च मायाकर्माऽथ शाम्बरी ॥१३॥ माया मायो तु मायावी मयिकश्चन्द्रजालिकः।। चारण: कथकस्तद्वत् स्यात्कुशीलव इत्ययम् ॥१४॥ नंट शैलालि शैलूष भरतास्तु कृशाश्विनि । वेणुध्या वैणुको वैणविकः स्यु र्वेणुवादके ॥१५॥ कार्मणज्ञवशीकारौ तुल्यौ भाणि प्रहासिनौ । भृतको भृविभुक् कर्मकर वैतनिकाः समा ॥१६॥ "भर्जको भ्राष्टिको भ्राष्ट्री स्तोवागुरिक जालिकौ । (१) मन्त्र यन्त्र तन्त्र वा ओषधि प्रयोगों से असंभव को संभव करने के तीन नाम-कुहका १ इन्द्रजाल २ मायाकर्म ३ नपुं. । (२) माया के दो नाम-शाम्बरी १ माया २ स्त्री. । (३) माया करने वाले के चार नाम-मायी १ मायावी २ मायिक ३ इन्द्रजालिक ४ नपुं०। (४) चारण के तीन नाम-चारण १ क्रथक २ कुशीलव ३ पु०। (५) नट के पांच नाम-नट १ शैलालि २ शैलष ३ भरत कृशाश्वी ५ पु० । (६) बांसुरी बजाने वाले के चार नाम-वेणुध्मा १ वैणुक २ वैणविक ३ वेणुवादक पु०। (७) ओषधी जड़ीबूटी से वश करने वाले के दो नाम-कामणज्ञ १ वशीकार २ पु० । (८) हास्य रस के अभिनेता के दो नाम-भाणी (भाणिन्) १ प्रहासी (प्रहासिन्) २ पु. । (९) वेतन से काम करने वाले के चार नाम-भृतक १ भृतिभुक् २ कर्मकर ३ वैतनिक ४ पु० । (१०) भरभुजा के तीन नामभार्जक १ भ्राष्ट्रिक २ भ्राष्ट्रो (भ्राष्ट्रिन् ३ पु० । (११) जाल मादि से पक्षियों को पकड़ने वाले के दो नाम-वागुरिक १ जालिक २ पु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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