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________________ द्वितीयकाण्डम् २३७ वणिग्वर्गः १. 'मूल्येऽर्थोऽवक्रयो वस्न; फैल लाभोऽधिकं तु यत् । क्लीबे मूलधनं नीवी स्त्रियाः परिपणः पुमान् ॥४३।। पुस्याधिर्बन्धकं भाटो भाटकः पण आपणः । उपधियास निक्षेपौ प्रतिदानं तदर्पणम् ॥४४॥ परिवर्त परावर्त नैमेय निमया अपि । विनिमयव्यतीहारौ परिदानेऽन्यवस्तुनः ॥४५॥ क्रस्य स्यादापणद्रव्यं पण्यं विक्रेय वस्तुनि । क्रेय क्रेतव्यमानेऽपि पणिकाऽऽपणिको समौ ॥४६॥ (१) मूल्य (कीमत) के चार नाम-मूल्य १ नपुं०, अर्घ र भवक्रय (वक्रय) ३ वस्न ४ पु० । (२) नफा (मुनाफा) के तीन नाम- फल १ अधिक २ नपुं०, लाभ ३ पु० । (३) मूलधन (पूंजी) के तीन नाम- मूलधन १ नपुं० नीवी २ स्त्री०, परिपणा ३ पु० । (४) गिरवी के दो नाम-आधि१ पु०, बन्धक २ नपुं०। (५) भाड़े के दो नाम- भाट १ भाटक २ पु० । (६) दुकान के दो नाम- पण १ आपण २ पु० । (७) धरोहर (थापण) के तीन नाम-उपधि १ न्यास २ निक्षेप ३ पु०। (८) धरोहर लोटाने का एक नाम- प्रतिदान १ नपुं० । (९) अदला बदला के सात नाम- परीबर्त १ परावर्त २ नेमेय ३ निमय ४ विनिमय ५ व्यतीहार ६ पु०, परिदान ७नपुं० । (१०) मुल्य लेकर बेचे नाय ऐसे दुकान के सामान का एक नाम-क्रय्य १ नपुं० । (११) बेचने योग्य वस्तुओं का एक नाम- पण्य १ नपुं० (१२) खरीदने योग्य वस्तु का एक नाम- क्रेय २ नपुं० । (क्रय्यादि त्रिलिङ्ग)। (१३)दुकानदार के दो नाम-पणिक २ आपणिक २ पु०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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