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________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः९ शेङ्का तत्त्वाभियोगाभ्यो तभेदो द्विविधो मतः। अभियोगस्य यार्थाथ्याऽन्वेषणे त्वभियोजनम् ॥१४॥ कारी स्त्री बन्धनाऽगार बन्यां तु प्रग्रहः पुमान् । आवेदेकोऽभियोक्ताऽभियोगोवादी च वादकः ॥१५॥ अभियुक्तः प्रतिद्वन्द्वी प्रतिवादी विवादकः । कक्षावेक्षक शुद्धान्त-पालाऽन्तर्वेशिकाः समाः ॥१६॥ कञ्चुकी सौविदल्ल: स्यात् षण्ढ वर्षवरावपि । (१) मुकदमा के दो नाम-शंकाभियोग १ तत्त्वाभियोग २ पुं.। (२) इन्क्वायरी (तहकिकात) का एक नामअभियोजन १ नपुं. । (३) जेल के दो नाम-कारा १ स्त्री., बन्धनाऽगार (बन्धनालय) २ नपुं.। (१) राज्यरक्षा के पुलिस अथवा सेना द्वारा जो पकड़ लिये गये हों, चाहे इनके ऊपर मुकदमा चलाया गया हो अथवा चलने वाला हो, लेकिन जमानत नहीं हुई हो, इनके दो नाम-बन्दी १ स्त्री. प्रग्रह २ पु. । (५) मुकदमा दायर करने वाला (मुईई) के पांच नाम-आवेदक १ अभियोक्ता २ अभियोगी ३ वादी ४ वादक ५ पु. । (६) मुद्दालह (जिसके उपर मुकदमा दायर किया गया है) के चार नाम-अभियुक्त १ प्रतिद्वन्द्वी २ प्रतिवादी ३ विवादक ४ पु. । (७) राजा के अन्तः पुर संरक्षक के सात नाम-कक्षावेक्षक १ शुद्धान्तपाल २ अन्तर्वेशिक ( अन्तर्वशिक ) ३ कञ्चुको ४ सौबिदल्ल ५ घण्ढ ६ वर्षवर ७ पु.! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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