SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयकाण्डम् १७९ मानववर्गः ७ कालागुरुणि मङ्गल्या श्रीवासः सरलद्रवः ॥ ११३॥ वृकधूपोऽनेकवस्तु कृते धूपे मनोहरे । कर्पूरो घनसारः स्याच्चन्द्रः स्त्री हिमवालुका ॥११४॥ पाटीरचन्दनोगन्ध-सारो मलयजः समाः । केशesगूरु कर्पूर कस्तूरी कोलकैः कृतम् ॥ ११५ ॥ मिश्रितं सर्वमेकत्र प्रोच्यते यक्षकर्दमः । विलेपन वर्णकं स्याद्वर्तित्रानुलेपनी ॥११६॥ पिष्टार्तः पटवासोऽपि वासयोगोऽथ वोसितम् । (१) मल्लिका पुष्प जैसा गन्धवाले के दो नाम - कालागुरु, १ नपुं०, मङ्गच्या २ खो० । (२) देवदारु रस निर्मित धूर के दो नाम श्रीवास १ सरलद्रव २ पु० । (३) अनेक मनोहर संमिश्रण से निर्मित धूप का एक नाम-वृकधूप १ पु० । (3) कर्पूर के चार नाम - कर्पूर १ घनसार २ चन्द्र ३ पु०, हिमवालुका ४ स्त्री ० । ( ५ ) श्रीखण्ड चन्दन के चार नाम- पाटीर १ चन्दन २ गन्धसार ३ मलयज ४ पु० । (६) केसर अगुरु कपूर कस्तूरी कोलक इनको एक करके बनाये गये धूप का एक नाम - यक्षकर्दम १५० । (७) शरीर के अनुला के लिये घिसा पिसा गया घुगन्धित द्रव्य के चार नाम - विलेन १ वर्णक २ नपुं०, वर्ति ३ गात्रानुलेपनी ९ खा० । (८) निमसे वत्र सुगन्वित हो जाय, उस चूर्ण के तीन नाम-विष्ठात १ पटवास २ वासयोग ३ पु० ( चूर्ण पु० नपुं०) । (९) कस्तूरा आदि द्रव्य से जो भावित हो चुका हो उसका एक नाम -वासित १ त्रिलिङ्ग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy