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________________ द्वितीयकाण्डम् १५९ मानववर्गः ७ उपभर्तरिजारः स्यात् पैत्यो भर्ता प्रियो धवः । जारजो गोलकः पत्यौ मृते कुण्डैस्तु जीविते ॥ ३४ ॥ भ्रात्रीयो भ्रातृजो भ्रातृ-पुत्रे भ्रातृव्य इत्यपि । जंपती दंपतो जाया पती स्त्री पुरुषावुभौ ॥३५॥ गर्भाशयो जरायु द्वै गर्भवेष्टन चर्मणः । कुक्षिस्थस्य भवेदुद्भ्रूणों गर्भे वैजनेनस्तु यः ॥ ३६ ॥ सूतिमासस्तृतीयस्तु शण्डेः क्लीबो नपुंसकः । प्रकृति स्थाविरं वृद्ध संघोऽपि स्याच्च वार्धकम् ||३७|| (१) जार के दो नाम उपभर्त्ता ( उपपति) १, जार २ पु० । (२) पति के नार नाम - पति १, भर्त्ता (भर्तृ) २, प्रिय ३, धव ४ पु० । (३) पति के मर जाने पर जारज पुत्र का एक नाम -- गोलक १ पु० । (४) पति के सत्ता में जारज पुत्र को ' कुण्ड' कहते हैं पु० । (५) भाई के पुत्र के चार नाम - भ्रात्रीय १, भ्रातृज २, भ्रातृपुत्र ३, भ्रातृव्य ४ पु० । (६) जोड़े स्त्री पुरुष के तीन नाम - जंपतो १, दंपता २ जायापती ३ पु० । (७) गर्भवेष्टन चर्मकोथलो के दो नाम - गर्भाशय ९ जरायु २ पुं० । (८) गर्भ के दो नाम - भ्रूण गर्भ २ पुं० । ( ९ ) प्रसव महिने का एक नाम - बैजनन १ पुं० । (१०) नपुंसक के तीन नामशण्ड (शण्ढे, पण्ड ) १ क्लीब २ नपुंसक ३ पुं० । (११) वृद्धों के भाव तथा कर्म के दो नाम - स्थाविर १ वार्धक २ नपुं., वार्धक शब्द का प्रयोग वृद्ध संघ में भी होता है । १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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