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________________ द्वितीयकाण्डम् धान्यादिवर्ग: ५ नष्टदुग्धस्य यनीरं मोरेटोजेज्जटोऽब्रवीत् । क्लीवे हैयङ्गवीनं तु नवनीतं नवोद्धृतम् ॥२९॥ दध्नः स्निग्धो घनोभागे उपरिष्टः सरः स्मृतः । मैस्तु स्याद् दधिजं मण्डं तैक्रघोले तु छच्छिका ३० घृतैमाज्यं हविः सर्पिर्गव्यादि दधिजं स्मृतम् । यस्तिलादि समृद्भूतः स्नेह्स्तत्तैल मुच्यते ॥३१॥ मयने स्यान्मधूच्छिष्टं मधुनि क्षौद्रमाक्षिके । गुडेंमूलं पुमानिक्षु स्तद्भेदाः " पौण्ड्रकादयः ||३२|| हिन्दी – (१) फाड़े गये दूध के पानी का एक नाम - मोरट १ पु० (जेजट का मत है) । (२) मक्खन के दो नाम हैयङ्गवीन १, नवनीत २, नपुं० । (३) मलाई का एक नाम-सर पु० । (४) दहीसे निकले पानो का एक नाम - मस्तु १ नपुं० । (५) छाछ (छास) के दो नाम तक १, नपुं० छच्छिका २ स्त्री० । (६) घी के चार नाम - घृत १, आज्य २, हविष ३, सर्पिष ४ नपुं० । (७) तेल के दो नाम - स्नेह नपुं० । (८) मोम के दो नाम - मयन १, शहद के तीन नाम - मधु १, क्षौद्र २, ईक्षु के दो नाम - गुडमूल १ नपुं०, विशेष के तेरह नाम -- पुण्डू १, इक्षु कान्तार ५, वेणुनिःसृत ६, पौण्ड्रक ७ ९ पुण्ड्रक १०, सेव्य ११, व्यतिरस १ पुं०, तैल २ मधूच्छिष्ट २ नपुं० । (९) माक्षिक ३ नपुं० । (१०) इक्षु २ पु० । (११) ईक्षु २, कर्कट ३, वंश ४, रसाल ८, सुकुमारक १२, मधु १३ पु० । Jain Education International १३३ -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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