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________________ द्वितीयकाण्डम् मैरुवर्ग: ३ उपर्कण्ठं तूपशल्ये सीमा सीमास्त्रियां द्वयम् । ॥ इति नगर वर्गः समाप्तः ॥ ॥ अथ मेरुवर्गः प्रारभ्यते ॥ मेरुर्हिमालयो विन्ध्यो निषदो माल्यवानपि । वैतान्यादय इत्येवं विशिष्टा भू भूधरौ ॥ १॥ पर्वतः शिखरी शैलो महीधोऽद्रि गिरिर्नगः । शिलोच्चयोऽचलः क्ष्माभृद्भूभृच्च सानुमानिति ॥ २ ॥ पाषाणोऽश्मो पलोग्रावा प्रस्तरः स्त्री शिला दृषत् । शृङ्गतु शिखरं कूटोsस्त्री प्रपातोऽतटो भृगुः ॥ ३॥ समीप के दो नाम - उपकण्ठ १ उपशल्य २ नपुं. । [८] सीमा के दो नाम - सीमा [ सीमन् ] सीमा [ डाबन्त ] दोनों स्त्री० । ॥ नगरवर्ग समाप्त ॥ ९१ हिन्दी - (१) मेरु १ हिमालय २ विन्ध्य ३ निषद ४ माध्य वान् ५ वैताढ्य ६ आदि राब विशिष्ट पर्वत है, जिन में मेरु के सोलह नाम हैं - मन्दर १, मेरु २, मनोरम ३, सुदर्शन ४, स्वयंप्रभ ५, गिरिराज ६, रत्नोच्चय ७, शिलोच्चय ८, मध्यलोक ९ नाभि १०, अर्थ ११, सूर्यावर्त १२ सूर्यावरण १३ उत्तम १४, दिशादि १५' वतंस १६, ( जं० ४ वक्ष०) । ( २ ) पर्वत के चौदह नाम - भूत्र १, भूधर २ पर्वत ३, शिखरी ४ शैल ५, महीघ्र ६ अदि ७, गिरि ८, नग ९ शिलोच्चय १० अचल ११, क्ष्माभृत् १२, भूभृत् १३, सानुमान् १४ । ( ३ ) पत्थर के सात नाम - पाषाण १ अश्मा (अश्मन्) २, उपल ३, ग्रावा (ग्रावन्) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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