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________________ ४३ अंजनचोरकी कथा भारतवर्ष-मगधदेशके अन्तर्गत राजगृह नामक शहरमें एक जिनदत्त सेठ रहता था। वह बड़ा धर्मात्मा था। वह निरन्तर जिनभगवान्की पूजा करता, दीन दुखियोंको दान देता, श्रावकोंके व्रतोंका पालन करता और सदा शान्त और विषयभोगोंसे विरक्त रहता । एक दिन जिनदत्त चतुर्दशीके दिन आधीरातके समय श्मशानमें कायोत्सर्ग ध्यान कर रहा था। उस समय वहां दो देव आये। उनके नाम अमितप्रभ और विद्युत्प्रभ थे । अमितप्रभ जैनधर्मका विश्वासी था और विद्युत्प्रभ दूसरे धर्मका। वे अपने-अपने स्थानसे परस्परके धर्मकी परीक्षा करनेको निकले थे। पहले उन्होंने एक पंचाग्नितप करनेवाले तापसकी परीक्षा की । वह अपने ध्यानसे विचलित हो गया। इसके बाद उन्होंने जिनदत्तको श्मशानमें ध्यान करते देखा । तब अमितप्रभने विद्यत्प्रभसे कहा-प्रिय, उत्कृष्ट चारित्रके पालनेवाले जिनधर्मके सच्चे साधुओंकी परीक्षा की बातको तो जाने दो, परन्तु देखते हो, वह गृहस्थ जो कायोत्सर्गसे खड़ा हुआ है, यदि तुममें कुछ शक्ति हो, तो तुम उसे ही अपने ध्यानसे विचलित कर दो यदि तुमने उसे ध्यानसे चला दिया तो हम तुम्हारा ही कहना सत्य मान लेंगे। __ अमितप्रभसे उत्तेजना पाकर विद्युत्प्रभने जिनदत्तपर अत्यन्त दुस्सह और भयानक उपद्रव किया, पर जिनदत्त उससे कुछ भी विचलित न हुआ और पर्वतकी तरह खड़ा रहा। जब सबेरा हुआ तब दोनों देवोंने अपना असली वेष प्रगट कर बड़ी भक्तिके साथ उसका खुब सत्कार किया और बहुत प्रशंसा कर जिनदत्तको एक आकाशगामिनी विद्या दी। इसके बाद वे जिनदत्तसे यह कहकर, कि श्रावकोत्तम ! तुम्हें आजसे आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हुई; तुम पंच नमस्कार मंत्रको साधनविधिके साथ इसे दूसरोंको प्रदान करोगे तो उन्हें भी यह सिद्ध होगी-अपने स्थानपर चले गये । विद्याकी प्राप्तिसे जिनदत्त बड़ा प्रसन्न हआ । उसकी अकृत्रिम चैत्यालयोंके दर्शन करनेकी इच्छा पूरी हई। वह उसी समय विद्याके प्रभावसे अकृत्रिम चैत्यालयके दर्शन करनेको गया और खब भक्तिभावसे उसने जिनभगवान्की पूजा की, जो कि स्वर्गमोक्षकी देनेवालो है। इसी प्रकार अब जिनदत्त प्रतिदिन अकृत्रिम जिनमन्दिरों के दर्शन करनेके लिये जाने लगा। एक दिन वह जानेके लिये तैयार खड़ा हुआ था कि उससे एक सोमदत्त नामके मालीने पूछा-आप प्रतिदिन सबेरे हो उठकर कहाँ जाया करते हैं ? उत्तरमें जिनदत्त सेठने कहा-मुझे दो देवों कृपासे आकाशगामिनी विद्या की प्राप्ति हुई है। सो उसके बलसे सुवर्णमय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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