SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संजयन्त मुनिकी कथा ४१ वन्दना के लिये गया । वहाँ उसने एक हरिचन्द्र नामके मुनिराजको देखा; उनसे धर्मोपदेश सुना । धर्मोपदेशका उसके चित्तपर बड़ा प्रभाव पड़ा । उसे बहुत वैराग्य हुआ । संसार शरीरभोगादिकों से उसे बड़ी घृणा हुई । उसने उसी समय मुनिराज से दीक्षा ग्रहण कर ली । एक दिन रश्मिवेग महामुनि एक पर्वतकी गुफामें कायोत्सर्ग धारण किये हुए थे कि एक भयानक अजगरने, जो कि श्रीभूतिका जीव सर्पपर्यायसे मरकर चौथे नरक गया था और वहाँसे आकर यह अजगर हुआ, उन्हें काट खाया | मुनिराज तब भी ध्यानमें निश्चल खड़े रहे, जरा भी विचलित नहीं हुए । अन्तमें मृत्यु प्राप्त कर समाधिमरण के प्रभावसे वे कापिष्ठस्वर्ग में जाकर आदित्यप्रभ नामक महर्द्धिक देव हुए, जो कि सदा जिन भगवान् के चरणकमलोंकी भक्ति में लीन रहते थे । और वह अजगर मरकर पापके उदयसे फिर चोथे नरक गया । वहाँ उसे नारकियोंने कभी तलवार से काटा और कभी करौतीसे, कभी उसे अग्निमें जलाया और कभी घानी में पेला, कभी अतिशय गरम तेलकी कढ़ाई में डाला और कभी लोहे के गरम खंभों से आलिंगन कराया। मतलब यह कि नरक में उसे घोर दुःख भोगना पड़े । चक्रपुर नामका एक सुन्दर शहर है। उसके राजा हैं चक्रायुध और उनकी महारानीका नाम चित्रादेवी है । पूर्वजन्मके पुण्यसे सिंहसेन राजाका जीव स्वर्गसे आकर इनका पुत्र हुआ । उसका नाम था वज्रायुध । जिनधर्मपर उसकी बड़ी श्रद्धा थी । जब वह राज्य करनेको समर्थ हो गया, तब महाराज चक्रायुधने राज्यका भार उसे सौंपकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली । वज्रायुध सुख और नोति के साथ राज्यका पालन करने लगे । उन्होंने बहुत दिनों तक राज्यसुख भोगा । पश्चात् एक दिन किसी कारण से उन्हें भी वैराग्य हो गया । वे अपने पिताके पास दीक्षा लेकर साधु बन गये । वज्रायुध मुनि एक दिन पियंगु नामक पर्वतपर कायोत्सर्ग ध्यान कर रहे थे कि इतने में एक दुष्ट भीलने, जो कि सर्पका जोव चौथे नरक गया था और वहाँसे अब यह भील हुआ, उन्हें बाणसे मार दिया। मुनिराज तो समभावोंसे प्राण त्याग कर सर्वार्थसिद्धि गये और वह भील रौद्रभावसे मरकर सातवें नरक गया । सर्वार्थसिद्धिसे आकर वज्रायुधका जीव तो संजयन्त हुआ, जो संसार में प्रसिद्ध है और पूर्णचंद्रका जीव उनका छोटा भाई जयन्त हुआ । वे दोनों भाई छोटी ही अवस्था में कामभोगोंसे विरक्त होकर पिताके साथ मुनि हो -गये । और वह भोला जीव सातवें नरकसे निकल कर अनेक कुगतियोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy