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________________ ४३६ आराधना कथाकोश कर्मों द्वारा सदा शुभ कर्म करते रहना चाहिए। पद्मावती तब करकण्डुसे जुदा होकर गान्धारी नामकी क्षुल्लकिनीके पास आई। उसे उसने भक्तिसे प्रणाम किया और आज्ञा पा उसी के पास वह बैठ गई। थोड़ी देर बाद पद्मावतीने उस क्षुल्लकिनीसे अपना सब हाल कहा और जिनदीक्षा लेनेकी इच्छा प्रगट की। क्षुल्लकिनी उसे तब समाधिगुप्त मुनिके पास लिवा गई । पद्मावतीने मुनिराजको नमस्कार कर उनसे भी अपनी इच्छा कह सुनाई । उत्तर में मुनि ने कहा - बहिन, तू साध्वी होना चाहती है, तेरा यह विचार बहुत अच्छा है पर यह समय तेरी दीक्षा के लिए उपयुक्त नहीं है । कारण तूने पहले जन्म में नागदत्ताकी पर्याय में जिव्रतको तीन बार ग्रहण कर तीनों बार ही छोड़ दिया था और फिर चौथी बार ग्रहण कर तू उसके फलसे राजकुमारी हुई। तने तीन बार व्रत छोड़ा उससे तुझे तीनों बार ही दुःख उठाना पड़ा। तीसरी बारका कर्म कुछ और बचा है । वह जब शान्त हो जाय और इस बीच में तेरे पुत्रको भी राज्य मिल जाय तब कुछ दिनों तक राज्य सुख भोग कर फिर पुत्रके साथ-साथ ही तू भी साध्वी होना । मुनि द्वारा अपना भविष्य सुनकर पद्मावती उन्हें नमस्कार कर उस क्षुल्लकिनीके साथ-साथ चली गई । अबसे वह पद्मावती उसके पास रहने लगी । 1 इधर करकण्डु बालदेवके यहाँ दिनों-दिन बढ़ने लगा। जब उसकी पढ़ने की उमर हुई तब बालदेवने अच्छे-अच्छे विद्वान् अध्यापकों को रखकर उसे पढ़ाया । करकण्डु पुण्यके उदयसे थोड़े ही वर्षों में पढ़-लिखकर अच्छा होशियार हो गया । कई विषयमें उसको अरोक गति हो गई । एक दिन बालदेव और करकण्डु हवा-खोरी करते-करते शहर बाहर मसानमें आ निकले । ये दोनों एक अच्छी जगह बैठकर मसान भूमिकी लीला देखने लगे । इतने में जयभद्र मुनिराज अपने संघको लिये इसी मसानमें आकर ठहरे । यहाँ एक नर कपाल पड़ा हुआ था । उसके मुँह और आँखों के तीन छेदोंमें तीन बाँस उग रहे थे। उसे देखकर एक मुनिने विनोदले अपने गुरुसे पूछा - भगवन्, यह क्या कौतुक है, जो इस नर-कपाल में तीन बाँस उगे हुए हैं ? तपस्वी मुनिने उसके उत्तरमें कहा- इस हस्तिनापुरका जो नया राजा होगा, इन बाँसोंके उसके लिए अंकुश, छत्र, दण्ड बगैरह बनेंगे । जयभद्राचार्य द्वारा कहे गये इस भविष्यको किसी एक ब्राह्मणने सुन लिया । अतः वह धनकी आशासे इन बाँसोंको उखाड़ लाया । उसके हाथसे इन्हें करकण्डुने खरीद लिया । सच है, मुनि लोग जिसके सम्बन्धमें जो बात कह देते हैं वह फिर होकर ही रहती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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