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________________ ४०४ आराधना कथाकोश कर मनुष्य जन्म लिया और उसमें खूब सुख भोगकर अन्तमें अविनाशी मोक्ष-लक्ष्मी प्राप्त की। तब आप लोग भी क्यों न इस अनन्त सुखको प्राप्तिके लिए पवित्र जैनधर्म में अपने विश्वास को दृढ़ करें। १०६, दान करनेवालोंकी कथा जगद्गुरु तीर्थकर भगवान्को नमस्कार कर पात्र दानके सम्बन्धको कथा लिखी जाती है। जिन भगवान्के मुखरूपी चन्द्रमासे जन्मी पवित्र जिनवाणी ज्ञानरूपी महा ससुद्रसे पार करनेके लिए मुझे सहायता दे, मुझे ज्ञान-दान दे । उन साधु रत्नोंको मैं भक्तिसे नमस्कार करता हूँ, जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रके धारक हैं, परिग्रह कनक-कामिनी आदिसे रहित वीतरागी हैं और सांसारिक सुख तथा मोक्ष सुखकी प्राप्तिके कारण हैं। पूर्वाचार्योंने दानको चार हिस्सोंमें बाँटा है, जैसे आहार-दान, औषधिदान, शास्त्रदान और अभयदान । और ये ही दान पवित्र हैं । योग्य पात्रोंको यदि ये दान दिये जाये तो इनका फल अच्छी जमीनमें बोये हुए बड़के बीजकी तरह अनन्त गुणा होकर फलता है। जैसे एक ही बावड़ोका पानी अनेक वृक्षोंमें जाकर नाना रूपमें परिणत होता है उसी तरह पात्रोंके भेदसे दानके फलमें भी भेद हो जाता है। इसलिए जहाँतक बने अच्छे सुपात्रोंको दान देना चाहिए। सब पात्रोंमें जैनधर्मका आश्रय लेनेवालेको अच्छा पात्र समझना चाहिए, औरोंको नहीं। क्योंकि जब एक कल्पवृक्ष हाथ लग गया फिर औरोंसे क्या लाभ ? जैनधर्ममें पात्र तीन बतलाये गये हैं। उत्तम पात्र-मुनि, मध्यम पात्र-व्रती श्रावक और जघन्य पात्र-अव्रतसम्यग्दृष्टि । इन तीन प्रकारके पात्रोंको दान देकर भव्य पुरुष जो सुख लाभ करते हैं उसका वर्णन मुझसे नहीं किया जा सकता । परन्तु संक्षेपमें यह समझ लीजिए कि धन-दौलत, स्त्री-पुत्र, खान-पान, भोगउपभोग आदि जितनी उत्तम-उत्तम सुख-सामग्री है वह तथा इन्द्र, नागेन्द्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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