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________________ सम्यग्दर्शनके प्रभावकी कथा ३८९ देखते ही हमारा कुआ उसके पीछे-पीछे हो जायगा।" श्रेणिक पत्र पढ़कर चुप रह गये। उनसे उसका कुछ उत्तर न बन पड़ा। सच है, जब जैसेको तैसा मिलता है तब अकल ठिकाने पर आती है। और धूर्तोंको सहजमें काबूमें ले लेना कोई हँसी खेल थोड़े ही है ? ___ कुछ दिनों बाद श्रेणिकने उनके पास एक हाथी भेजा और लिखा कि इसका ठीक-ठीक तोल कर जल्दी खबर दो कि यह वजनमें कितना है ? अभयकुमार उन्हें बुद्धि सुझानेवाला था हो, सो उसके कहे अनुसार उन लोगोंने नावमें एक ओर तो हाथीको चढ़ा दिया और दूसरी ओर खूब पत्थर रखना शुरू किया। जब देखा कि दोनों ओरका वजन समतोल हो गया तब उन्होंने उन सब पत्थरोंको अलग तोलकर श्रेणिकको लिख भेजा कि हाथोका तोल इतना है । श्रेणिकको अब भी चुप रह जाना पड़ा। तीसरी बार तब श्रेणिकने लिख भेजा कि "आपका आ गाँवके पूर्वमें है, उसे पश्चिमकी ओर कर देना। मैं बहुत जल्दी उसे देखनेको आऊँगा।" इसके लिये अभयकुमारने उन्हें युक्ति सुझाकर गाँवको ही पूर्वकी ओर बसा दिया । इससे कुँआ सुतरां पश्चिममें हो गया। ___ चौथी बार श्रेणिकने एक मेंढ़ा भेजा कि "यह मेंढा न दुर्बल हो, न बढ़ जाय और न इसके खाने पिलाने में किसी तरहकी असावधानी की जाय । मतलब यह कि जिस स्थितिमें यह अब है इसी स्थिति में बना रहे। में कुछ दिनों बाद इसे वापिस मंगा लंगा।" इसके लिये अभयकुमारने उन्हें यह युक्ति बताई कि मेंढेको खुब खिला-पिला कर घण्टा दो घण्टाके लिये उसे सिंहके सामने बाँध दिया करिए, ऐसा करनेसे न यह बढ़ेगा और न घटेगा ही। वैसा ही किया गया। मेंढा जैसा था वैसा ही रहा । श्रेणिकको इस युक्तिमें भी सफलता प्राप्त न हुई। ___ पाँचवीं बार श्रेणिकने उनसे घड़ेमें रखा एक कोला (कद्) मँगाया। . इसके लिये अभयकुमारने बेल पर लगे हुये एक छोटे कोलेको घड़ेमें रखकर बढ़ाना शुरू किया और जब उससे घड़ा भर गया तब उस घड़ेको श्रेणिकके पास पहुंचा दिया। छठी बार श्रेणिकने उन्हें लिख भेजा कि "मुझे बालूरेतकी रस्सीको दरकार है, सो तुम जल्दी बनाकर भेजो।" अभयकुमारने इसके उत्तरमें यह लिखवा भेजा कि "महाराज, जैसी रस्सी आप तैयार करवाना चाहते हैं कृपा कर उसका नमूना भिजवा दीजिये । हम वैसी ही रस्सो फिर तैयार कर सेवामें भेज देंगे।" इत्यादि कई बातें श्रेणिकने उनसे करवाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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