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________________ सम्यग्दर्शनके प्रभावको कथा . ३८७ कुल-परम्परासे चले आते हों। और जहाँ इनका मूलमें ही कुछ ठिकाना नहीं वहाँ इन गुणोंका होना असम्भव नहीं तो दुःसाध्य अवश्य है। आप एक कौएको मोरके पीखोंसे खूब सजाकर सुन्दर बना दीजिए, पर रहेगा वह कौआका कौआ ही । ठीक इसी तरह चिलातपुत्र आज एक विशाल राज्यका मालिक जरूर बन गया, पर उसमें जो भील-जातिका अंश है वह अपने चिर संस्कारके कारण इसमें पवित्र गुणोंकी दाल गलने नहीं देता। और यही कारण हुआ कि राज्याधिकार प्राप्त होते ही उसकी प्रवृत्ति अच्छी ओर न होकर अन्यायकी ओर हुई। प्रजाको उसने हर तरह तंग करना शुरू किया। कोई दुर्व्यसन, कोई कुकर्म उससे न छूट पाया । अच्छेअच्छे घराने की कुलशील सतियोंकी इज्जत ली जाने लगी। लोगोंका धनमाल जबरन लूटा-खोसा जाने लगा। उसकी कुछ पुकार नहीं, सुनवाई नहीं, जिसे रक्षक जानकर नियत किया वही जब भक्षक बन बैठा तब उसको पुकार, को भी कहाँ जाये ? प्रजा अपनी आँखोंसे घोरसे घोर अन्याय देखती, पर कुछ करने-धरनेको समर्थ न होकर वह मन मसोस कर रह जाती। जब चिलात बहत ही अन्याय करने लगा तब उसकी खबर बड़ी-बड़ी दूर तक बात सुन पड़ने लगी। श्रेणिकको भी प्रजा द्वारा यह हाल मालूम हुआ। उसे अपने पिताकी निरीह प्रजा पर चिलातका यह अन्याय सहन नहीं हुआ। उसने तब अपने श्वसुर वसुपालसे कुछ सहायता लेकर चिलात पर चढ़ाई कर दी। प्रजाको जब श्रेणिककी चढ़ाईका हाल मालूम हुआ तो उसने बड़ी खुशी मनाई, और हृदयसे उसका स्वागत किया । श्रेगिकने प्रजाको सहायतासे चिलातको सिंहासनसे उतार देश बाहर किया और प्रजाकी अनुमतिसे फिर आप हो सिंहासन पर बैठा । सच है, राज्यशासन वहीं कर सकता है और वही पात्र भी है जो बुद्धिवान् हो, समर्थ हो और न्यायप्रिय हो । दुर्बुद्धि, दुराचारी, कायर और अकर्मण्य पुरुष उसके योग्य नहीं। इधर कई दिनोंसे अपने पिताको न देखकर अभयकुमारने अपनी मातासे एक दिन पूछा-मां, बहुत दिनोंसे पिताजी देख नहीं पड़ते, सो वे कहाँ हैं । अभयमतीने उत्तरमें कहा-बेटा, वे जाते समय कह गये थे कि राजगहमें 'पाण्डुकुटि' नामका महल है। प्रायः मैं वहीं रहता हूँ। सो मैं जब समाचार दूं तब वहीं आ जाना । तबसे अभी तक उनका कोई पत्र न आया । जान पड़ता है राज्यके कामोंसे उन्हें स्मरण न रहा। माता द्वारा पिताका पता पा अभयकुमार अकेला हो राजगृहको रवाना हुआ। कुछ दिनोंमें वह नन्दगाँव में पहुँचा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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