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________________ ३८४ आराधना कथाकोश थोडासा जल रख दिया था। इसलिए के श्रेणिक अपने पांवोंको साफ कर भोतर आये। श्रेणिकने घर पहुँच कर देखा तो भीतर जानेके रास्तेमें बहुत कोचड़ हो रहा है। वह कीचड़में होकर यदि जाये तो उसके पाँव भरते हैं और दूसरी ओरसे भीतर जानेका रास्ता उसे मालूम नहीं है। यदि वह मालूम भी करे तो उससे कुछ लाभ नहीं। अभयमतीने उसे इसी रास्ते बलाया है। वह फिर कोचड़में हो होकर गया। बाहर होते ही उसे पाँव धोनेके लिए थोड़ा जल रखा हुआ मिला। वह बड़े आश्चर्यमें आ गया कि कीचड़से ऐसे लथपथ भरे पाँवोंको मैं इस थोड़ेसे पानोसे कैसे धो सकंगा। पर इसके सिवा उसके पास और कुछ उपाय भी न था। तब उसने पानीके पास ही रखी हुई उस छाईको उठाकर पहले उससे पाँवोंका कीचड़ साफ कर लिया और फिर उस थोड़ेसे जलसे धोकर एक कपड़ेसे उन्हें पोंछ लिया। इन सब परीक्षाओंमें पास होकर जब श्रेणिक अभयमतोके सामने आया तब अभयमतीने उसके सामने एक ऐसा मंगेका दाना रक्खा कि जिसमें हजारों बांके-सीधे छेद थे। यह पता नहीं पड़ पाता था कि किस छेदमें सूतका धागा पिरोनेसे उसमें पिरोया जा सकेगा और साधारण लोगोंके लिए यह बड़ा कठिन भी था। पर श्रेणिकने अपनी बुद्धिकी चतुरतासे उस मूगेमें बहुत जल्दी धागा पिरो दिया । श्रेणिककी इस बुद्धिमानीको देखकर अभयमती दंग रह गई। उसने तब मन ही मन संकल्प किया कि मैं अपना ब्याह इसीके साथ करूंगी। इसके बाद उसने श्रेणिकका बड़ी अच्छी तरह आदर-सत्कार किया, खूब आनन्दके साथ उसे अपने ही घर पर जिमाया और कुछ दिनोंके लिए उसे वहीं ठहरा भी लिया । अभयमतीकी मंशा उसकी सखी द्वारा जानकर उसके मातापिताको बड़ी प्रसन्नता हुई। घर बैठे उन्हें ऐसा योग्य जंवाई मिल गया, इससे बढ़कर और प्रसन्नताकी बात उनके लिए हो भी क्या सकतो थी। कुछ दिनों बाद श्रेणिकके साथ अभयमतीका ब्याह भी हो गया। दोनोंने नए जीवनमें प्रवेश किया। श्रेणिकके कष्ट भी बहुत कम हो गए। वह अब अपनी प्रियाके साथ सुखसे दिन बिताने लगा। सोमशर्मा नामका एक ब्राह्मण एक अटवीमें जिनदत्त मुनिके पास दीक्षा लेकर संन्याससे मरा था। उसका उल्लेख अभिषेकविधिसे प्रेम करने वाले जिनदत्त और वसुमित्रकी १०३वीं कथामें आ चुका है। यह सोमशर्मा यहाँसे मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। जब इसकी स्वर्गायु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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