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________________ ३३६ आराधना कथाकोश ८८. अकालमें शास्त्राभ्यास करनेवालेकी कथा ___ संसार द्वारा पूजे जानेवाले और केवलज्ञान जिनका प्रकाशमान नेत्र है, ऐसे जिन भगवान्को नमस्कार कर असमय में जो शास्त्राभ्यासके लिए योग्य नहीं है, शास्त्राभ्यास करनेसे जिन्हें उसका बुरा फल भोगना पड़ा, उनकी कथा लिखी जाती है। इसलिए कि विचारशीलोंको इस बातका ज्ञान हो कि असमयमें शास्त्राभ्यास करना अच्छा नहीं है, उसका बुरा फल होता है। - शिवनन्दो मुनिने अपने गुरु द्वारा यद्यपि यह जान रक्खा था कि स्वाध्यायका समय-काल श्रवण नक्षत्रका उदय होनेके बाद माना गया है, तथापि कर्मोंके तीव्र उदयसे वे अकालमें ही शास्त्राभ्यास किया करते थे। फल इसका यह हुआ कि मिथ्या समाधिमरण द्वारा मरकर उन्होंने गंगामें एक बड़े भारो मच्छको पर्याय धारण की। सो ठीक ही है जिन भगवान्की आज्ञाका उल्लंघन करनेसे इस जीवको दुर्गतिके दुःख भोगना ही पड़ते हैं। एक दिन नदी किनारे पर एक मुनि शास्त्राभ्यास कर रहे थे। इस मच्छने उनके पाठको सुन लिया। उससे उसे जातिस्मरण हो गया । तब उसने इस बातका बहुत पछतावा किया कि हाय ! में पढ़कर भो मूर्ख बना रहा, जो जैनधर्मसे विमुख होकर मैंने पापकर्म बांधा । उसीका यह फल है, जो मुझे मच्छ-शरीर लेना पड़ा। इस प्रकार अपनी निन्दा और अपने पापकर्मकी आलोचना कर उसने भक्तिसे सम्यक्त्व ग्रहण किया, जो कि सब जीवोंका हित करनेवाला है । इसके बाद वह जिन भगवान्की आराधना कर पुण्यके उदयसे स्वर्गमें महद्धिक देव हुआ। सच है, मनुष्य धर्मकी आराधना कर स्वर्ग जाता है और पापी धर्मसे उलटा चलकर दुर्गांतमें जाता है। पहला सुख भोगता है और दूसरा दुःख उठाता है। यह जानकर बुद्धिवानोंको उचित है, उनका कर्तव्य है कि वे जिनेन्द्र भगवान्के उपदेश किये धर्मको भक्तिसे अपनी शक्तिके अनुसार आराधना करें, जो कि सब सुखों का देनेवाला है। ___ सम्यग्ज्ञान जिसने प्राप्त कर लिया उसकी सारे संसारमें कीत्ति होती है, सब प्रकारकी उत्तम-उत्तम सम्पदाएँ उसे प्राप्त होती हैं, शान्ति मिलती है और वह पवित्रताकी साक्षात्प्रतिमा बन जाता है। इसलिए भव्यजनोंको उचित है कि वे जिन भगवान्के पवित्र ज्ञानको, जो कि देवों और विद्याधरों द्वारा पूजा-माना जाता है, प्राप्त करनेका यत्न करें। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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