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________________ ३२८ आराधना कथाकोश ८३. श्रद्धायुक्त मनुष्यकी कथा निर्मल केवलज्ञान द्वारा सारे संसारके पदार्थों को प्रकाशित करनेवाले जिन भगवान्को नमस्कार कर श्रद्धागुणके धारी विनयंधर राजाकी कथा लिखी जाती है जो कथा सत्पुरुषोंको प्रिय है। कुरुजांगल देशको राजधानी हस्तिनापुरका राजा विनयंधर था। उसकी रानीका नाम विनयवती था। यहाँ वृषभसेन नामका एक सेठ रहता था। इसकी स्त्रीका नाम वृषभसेना था। इसके जिनदास नामका एक बुद्धिमान पुत्र था। विनयंधर बड़ा कामी था। सो एक बार इसके कोई महारोग हो गया। सच है, ज्यादा मर्यादासे बाहर विषय सेवन भी उलटा दुःखका ही कारण होता है। राजाने बड़े-बड़े वैद्योंका इलाज करवाया पर उसका रोग किसी तरह न मिटा । राजा इस रोगसे बड़ा दुःखी हुआ। उसे दिनरात चैन न पड़ने लगा। । राजाका एक सिद्धार्थ नामका मंत्री था। यह जैनी था। शुद्ध सम्यग्दर्शनका धारक था। सो एक दिन इसने पादौषधि ऋद्धिके धारक मुनिराजके पाँव प्रक्षालनका जल लाकर, जो कि सब रोगोंका नाश करनेवाला होता है, राजाको दिया। जिन भगवान के सच्चे भक्त उस राजाने बड़ो श्रद्धाके साथ उस जलको पी-लिया। उसे पीनेसे उसका सब रोग जाता रहा । जैसे सूरजके उगनेसे अन्धकार जाता रहता है। सच है, महात्माओंके तपके प्रभावको कौन कह सकता है, जिनके कि पाँव धोनेके पानीसे ही सब रोगोंको शान्ति हो जाती है। जिस प्रकार सिद्धार्थ मन्त्रीने मुनिके पाँव प्रक्षालनका पवित्र जल राजाको दिया, उसी प्रकार अन्य भव्यजनोंको भी उचित है कि वे धर्मरूपी जल सर्व-साधारणको देकर उनका संसार ताप शान्त करें। जैनतत्त्वके परम विद्वान् वे पादौषधिऋद्धिके धारक मुनिराज मुझे शान्ति-सुख दें। __ जैनधर्ममें या जैनधर्मके अनुसार किये जानेवाले दान, पूजा, व्रत, उपवास आदि पवित्र कार्यों में की हुई श्रद्धा, किया हुआ विश्वास दुःखोंका नाश करनेवाला है। इस श्रद्धाका आनुषङ्गिक फल है-इन्द्र, चक्रवर्ती, विद्याधर आदिकी सम्पदाका लाभ और वास्तविक फल है मोक्षका कारण केवलज्ञान, जिसमें कि अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ये चार अनन्तचतुष्टय-आत्माकी खास शक्तियाँ प्रगट हो जाती हैं। वह श्रद्धा आप भव्यजनोंका कल्याण करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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