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________________ वृषभसेनको कथा ३११ नगरों और गांवोंमें धर्मोपदेश करता और अनेक भव्य-जनोंको हितमार्ग में लगाता वह दक्षिण की ओर बसे हुए वनवास देशके क्रौंचपुरमें आया । इस पुरके पश्चिम किनारे कोई अच्छी जगह देख इसने संघको ठहरा दिया । चाणक्य को यहाँ यह मालूम हो गया कि उसकी उमर बहुत थोड़ी रह गई है । इसलिये उसने वहीं प्रायोपगमन संन्यास ले लिया। नन्दका दूसरा मंत्री सुबन्धु था । चाणक्यने जब नन्दको मरवा डाला तब उसके क्रोधका पार नहीं रहा । प्रतिहिंसाकी आग उसके हृदयमें दिनरात जलने लगी । पर उस समय उसके पास कोई साधन बदला लेनेका न था। इसलिये वह लाचार चुप रहा। नन्दकी मृत्युके बाद वह इसी क्रौंचपुरमें आकर यहाँके राजा सुमित्रका मंत्री हो गया। राजाने जब मुनिसंघके आनेका समाचार सुना तो वह उसकी वन्दना पूजाके लिए आया, बड़ी भक्तिसे उसने सब मुनियोंकी पूजा कर उनसे धर्मोपदेश सुना और बाद उनकी स्तुति कर वह अपने महलमें लौट आया। मिथ्यात्वी सुबन्धुको चाणक्यसे बदला लेनेका अब अच्छा मोका मिल गया। उसने उस मुनिसंघके चारों ओर खूब घास इकट्ठो करवा कर उसमें आग लगवा दी। मुनि संघ पर हृदयको हिला देनेवाला बड़ा ही भयंकर दुःसह उपसर्ग हुआ सही, पर उसने उसे बड़ो सहन-शोलताके साथ सह लिया और अन्तमें अपनी शुक्लध्यानरूपी आत्मशक्तिसे कर्मों का नाश कर सिद्धगति लाभ की। जहाँ राग, द्वेष, क्रोध, मान, माप, लोभ, दुःख, चिन्ता आदि दोष नहीं हैं और सारा संसार जिसे सबसे श्रेष्ठ समझता है। चाणक्य आदि निर्मल चारित्रके धारक ये सब मुनि अब सिद्धगतिमें ही सदा रहेंगे। ज्ञानके समुद्र ये मुनिराज मुझे भी सिद्धगतिका सुख दें। ७४. वृषभसेनकी कथा जिनेन्द्र भगवान्, जिनवाणो और ज्ञानके समुद्र साधुओंको नमस्कार कर वृषभसेनकी उत्तम कथा लिखी जाती है। दक्षिण दिशाकी ओर बसे हुए कुण्डल नगरके राजा वैश्रवण बड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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