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________________ वृषभसेनको कथा २८५ ड़नेके लिए स्वयं किसी एक घने जंगलमें गये। हाथी इन्हें बड़ी दूर ले भागा और आगे-आगे भागता ही चला जाता था। इन्होंने उसके ठहरानेकी बड़ी कोशिश की, पर उसमें ये सफल नहीं हुए। भाग्यसे हाथी एक झाड़के नीचे होकर जा रहा था कि इन्हें सुबुद्धि सूझ गई । वे उसकी टहनी पकड़ कर लटक गये और फिर धीरे-धीरे नीचे उतर आये । यहाँसे चलकर ये खेट नामके एक छोटेसे पर बहुत सुन्दर गाँवके पास पहंचे। एक पनघट पर जाकर ये बैठ गये। इन्हें बड़ी प्यास लग रही थी । इन्होंने उसी समय पनघट पर पानी भरनेको आई हुई जिनपालकी लड़की जिनदत्तासे जल पिला देनेके लिए कहा। उसने इनके चेहरेके रंग-ढंगसे इन्हें कोई बड़ा आदमी समझ जल पिला दिया। बाद अपने घर पर आकर उसने प्रद्योतका हाल अपने पितासे कहा । सुनकर जिनपाल दौड़ा हुआ आकर इन्हें अपने घर लिवा लाया और बड़े आदर सत्कारके साथ इसने उन्हें स्नान-भोजन कराया। प्रद्योत उसको इन मेहमानोसे बड़े प्रसन्न हए । उन्होंने जिनपालको अपना सब परिचय दिया। जिनपालने ऐसे महान् अतिथि द्वारा अपना घर पवित्र होनेसे अपनेको बड़ा भाग्यशाली माना । वे कुछ दिन वहाँ और ठहरे। इतनेमें उनके सब नौकर-चाकर भी उन्हें लिवानेको आ गये । प्रद्योत अपने शहर जानेको तैयार हुए। इसके पहले एक बात कह देने की हैं कि जिनदत्ताको जबसे प्रद्योतने देखा तब हीसे उनका उस पर अत्यन्त प्रेम हो गया था और इसीसे जिनपालकी सम्मति पा उन्होंने उसके साथ ब्याह भी कर लिया था। दोनों नव दम्पति सुखके साथ अपने राज्यमें आ गये । जिनदत्ताको तब प्रद्योतने अपनी पट्टरानीका सम्मान दिया। सच है, समय पर दिया हुआ थोड़ा भी दान बहत ही सुखोंका देनेवाला होता है । जैसे वर्षाकालमें बोया हुआ बोज बहुत फलता है। जिनदत्ताके उस जलदानसे, जो उसने प्रद्योतको किया था, जिनदत्ताको एक राजरानी होनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये नये दम्पति सुखसे संसार-यात्रा बिताने लगे, प्रतिदिन नये-नये सुखोंका स्वाद लेनेमें इनके दिन कटने लगे। कुछ दिनों बाद इनके एक पुत्र हुआ। जिस दिन पुत्र होनेवाला था, उसी रातको राजा प्रद्योतने सपनेमें एक सफेद बलको देखा था। इसलिए पुत्रका नाम भी उन्होंने वृषभसेन रख दिया। पुत्र-लाभ हुए बाद राजाको प्रवृत्ति धर्मकार्योंको ओर और अधिक झुक गई । वे प्रतिदिन पूजा, प्रभावना, अभिषेक, दान आदि पवित्र कार्योंको बड़ी भक्ति श्रद्धाके साथ करने लगे। इसी तरह सुखके साथ कोई आठ बरस बीत गये। जब वृषभसेन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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