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________________ आराधना कथाकोश [ तीसरा भाग] ६३. धर्मघोष मुनिकी कथा - सत्य धर्मका उपदेश करनेवाले अतएव सारे संसारके स्वामी जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर श्रीधर्मघोष मुनिकी कथा लिखी जाती है । एक महीनाके उपवासे धर्ममूर्ति श्रीधर्मघोष मुनि एक दिन चम्पापुरीके किसी मुहल्लेमें पारणा कर तपोवनको ओर लौट रहे थे। रास्ता भूल जानेसे उन्हें बड़ी दूर तक हरी-हरी घास पर चलना पड़ा। चलने में अधिक परिश्रम होनेसे थकावटके मारे उन्हें प्यास लग आई। वे आकर गंगाके किनारे एक छायादार वृक्षके नीचे बैठ गये। उन्हें प्याससे कुछ व्याकुलसे देखकर गंगा देवी पवित्र जलका भरा एक लोटा लेकर उनके पास आई। वह उनसे बोलो-योगिराज, मैं आपके लिए ठंडा पानी लाई हूँ, आप इसे पीकर प्यास शान्त कीजिए। मुनिने कहा-देवी, तने अपना कर्तव्य बजाया, यह तेरे लिए उचित ही था; पर हमारे लिए देवों द्वारा दिया गया आहार-पानी काम नहीं आता। देवी सुनकर बड़ी चकित हुई। वह उसी समय इसका कारण जाननेके लिए विदेहक्षेत्रमें गई और वहाँ सर्वज्ञ भगवान्को नमस्कार कर उसने पूछा-भगवन्, एक प्यासे मनिको मैं जल पिलाने गई, पर उन्होंने मेरे हाथका पानी नहीं पिया; इसका क्या कारण है ? तब भगवान्ने इसके उत्तरमें कहा-देवोंका दिया आहार मनि लोग नहीं कर सकते। भगवान्का उत्तर सुन देवी निरुपाय हुई। तब उसने मुनिको शान्ति प्राप्त हो, इसके लिए उनके चारों ओर सुगन्धित और ठण्डे जलकी वर्षा करना शुरू की। उससे मुनिको शान्ति प्राप्त हुई। इसके बाद शुक्लध्यान द्वारा घातिया कर्मोका नाश कर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। स्वर्गके देव उनकी पूजा करनेको आये। अनेक भव्य-जनोंको आत्म-हितके रास्ते पर लगा कर अन्तमें उन्होंने निर्वाण लाभ किया। वे धर्मघोष मुनिराज आपको तथा मुझे भी सुखी करें, जो पदार्थोकी सूक्ष्मसे सूक्ष्म स्थिति देखनेके लिए केवलज्ञानरूपी नेत्रके धारक हैं, भव्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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