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________________ २७६ आराधना कथाकोश बड़े-बड़े कीले ठोककर चलता बना । गजकुमार मुनि पर उपद्रव तो बड़ा ही दुःसह हुआ, पर वे जैनतत्त्वके अच्छे अभ्यासी थे, अनुभवी थे, इसलिये उन्होंने इस घोर कष्टको एक तिनके के चुभनेकी बराबर भी न गिन बड़ी शान्ति और धीरताके साथ शरीर छोड़ा। यहाँसे ये स्वर्गमें गये । वहाँ अब चिरकाल तक वे सुख भोगेंगे । अहा ! महापुरुषोंका चरित बड़ा ही अचंभा पैदा करनेवाला होता है। देखिये, कहाँ तो गजकुमार मुनिको ऐसा दुःसह कष्ट और कहाँ सुख देनेवाली पुण्य-समाधि ! इसका कारण सच्चा तत्वज्ञान है । इसलिये इस महत्ताको प्राप्त करनेके लिए तत्वज्ञानका अभ्यास करना सबके लिए आवश्यक है । सारे संसारक प्रभु कहलानेवाले जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा सुखके कारण धर्मका उपदेश सुनकर जो गजकुमार अपनो दुर्बुद्धिको छोड़कर पवित्र बुद्धिके धारक और बड़े भारी सहनशील योगी हो गये, वे हमें भी सुबुद्धि और शान्ति प्रदान करें, जिससे हम भी कर्त्तव्यके लिये कष्ट सहने में समर्थ हो सकें। ६०. पणिक मुनिकी कथा सुखके देनेवाले और सत्पुरुषोंसे पूजा किये गये जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर श्री पणिक नामके मुनिको कथा लिखी जाती है, जो सबका हित करनेवाली है ! पणीश्वर नामक शहरके राजा प्रजापालके समय वहां सागरदत्त नामका एक सेठ हो चुका है। उसकी स्त्रीका नाम पणिका था। इसके एक लड़का था। उसका नाम भी पणिक था। पणिक सरल, शान्त और पवित्र हृदयका था। पाप कभी उसे छू भी न गया था। सदा अच्छे रास्ते पर चलना उसका कर्तव्य था। एक दिन वह भगवान्के समवशरणमें गया, जो कि रत्नोंके तोरणोंसे बड़ी ही सुन्दरता धारण किये हुए था और अपनी मानस्तंभादि शोभासे सबके चित्तको आनन्दित करनेवाला था। वहां उसने वर्द्धमान भगवान्को गंधकुटी पर विराजे हुए देखा । भगवान्की इस समयकी शोभा अपूर्व और दर्शनीय थी। वे रत्न-जड़े सोनेके सिंहासन पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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