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________________ २६८ आराधना कथाकोश अत्यन्त क्रोध आया । वह उनकी ओर घूरती हुई उनके बिलकुल नजदीक आ गई। उसका क्रोध भाव उमड़ा। उसने सुकुमालको खाना शुरू कर दिया । उसे खाते देखकर उसके पिल्ले भी खाने लग गये । जो कभी एक तिनकेका चुभ जाना भी नहीं सह सकता था, वह आज ऐसे घोर कष्टको सहकर भी सुमेरुसा निश्चल बना हुआ था। जिसके शरीर को एक साथ चार हिंसक जीव बड़ी निर्दयतासे खा रहे हैं, तब भी जो रंचमात्र हिलताडुलता तक नहीं । उस महात्माकी इस अलौकिक सहन-शक्तिका किन शब्दों में उल्लेख किया जाय, यह बुद्धि में नहीं आता । तब भी जो लोग एक ना- कुछ चीज काँटेके लग जानेसे तलमला उठते हैं, वे अपने हृदय में जरा गंभीरता के साथ विचार कर देखें कि सुकुमाल मुनिकी आदर्श सहनशक्ति कहाँ तक बढ़ी चढ़ी थी और उनका हृदय कितना उच्च था ! सुकुमाल मुनिकी यह सहनशक्ति उन कर्त्तव्यशील मनुष्यों को अप्रत्यक्ष रूप शिक्षा कर रही है कि अपने उच्च और पवित्र कामों में आनेवाले विघ्नोंकी परवा मत करो । विघ्नोंको आने दो और खूब आने दो । आत्माकी अनन्त शक्तियों के सामने ये विघ्न कुछ चीज नहीं, किसी गिनती में नहीं । तुम अपने पर विश्वास करो । भरोसा करो । हर एक कामोंमें आत्मदृढ़ता, आत्मविश्वास, उनके सिद्ध होने का मूलमंत्र है । जहाँ ये बातें नहीं वहाँ मनुष्यता भी नहीं। तब कर्त्तव्यशीलता तो फिर योजनोंकी दूरी पर है । सुकुमाल यद्यपि सुखिया जीव थे, पर कर्त्तव्यशीलता उनके पास थी । इसीलिए देखनेवालोंके भी हृदयको हिला देनेवाले कष्ट में भी वे अचल रहे । सुकुमाल मुनिको उस सियारनीने पूर्व बैरके सम्बन्धसे तीन दिन तक खाया । पर वे मेरुके समान धीर रहे । दुःखकी उन्होंने कुछ परवा न की । यहाँ तक कि अपनेको खानेवाली सियारनी पर भी उनके बुरे भाव न हुए। शत्रु और मित्रको समभावोंसे देखकर उन्होंने अपना कर्त्तव्य पालन किया । तीसरे दिन सुकुमाल शरीर छोड़कर अच्युतस्वर्ग में महद्धिक देव हुए । वायुभूतिकी भौजीने निदानके वश सियारनी होकर अपने बरका बदला चुका लिया । सच है, निदान करना अत्यन्त दुःखों का कारण है । इसलिए भव्यजनोंको यह पापका कारण निदान कभी नहीं करना चाहिए । इस पापके फलसे सियारनो मरकर कुगतिमें गई । कहाँ वे मनको अच्छे लगनेवाले भोग और कहाँ यह दारुणा तपस्या ! सच तो यह है कि महापुरुषों का चरित कुछ विलक्षण हुआ करता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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