SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गन्धर्वसेनाकी कथा ४६. गन्धर्वसेनाकी कथा सब सुखों के देनेवाले जिनभगवान् के चरणोंको नमस्कार कर मूर्खिणी गन्धर्वसेनाका चरित लिखा जाता है । गन्धर्वसेना भी एक ही विषयको अत्याशक्ति से मौत के पंजे में फँसी थी । पाटलिपुत्र (पटना) के राजा गन्धवदत्तको रानी गन्धर्वदत्ता के गन्धर्वसेना नामकी एक कन्या थी । गन्धर्वसेना गान विद्याकी बड़ी अच्छी जानकार थी । और इसीलिए उसने प्रतिज्ञा कर रक्खी थी कि जो मुझे गाने में जीत लेगा 'वही मेरा स्वामी होगा, उसीकी मैं अंकशायिनी बनूंगी । गन्धर्वसेनाकी खूबसूरती की मनोहारी सुगन्धको लालसासे अनेक क्षत्रियकुमार भौंरे की तरह खिंचे हुए आते थे, पर यहाँ आकर उन सबको निराश - मुँह लौट जाना पड़ता था । गन्धर्वसेना के सामने गाने में कोई नहीं ठहरने पाता था । २३५ एक पांचाल नामका उपाध्याय गानशास्त्रका बहुत अच्छा अभ्यासी था । उसकी इच्छा भी गन्धर्वसेना को देखनेकी हुई । वह अपने पाँचसौ शिष्यों को साथ लिये पटना आकर एक बगीचे में ठहरा । समय गर्मीका था और बहुत दूरको मंजिल करनेसे पांचाल थक भी गया था। इसलिए वह अपने शिष्यों से यह कहकर, कि कोई यहाँ आये तो मुझे जगा देना, एक वृक्षको ठंडी छाया में सो गया । इधर तो यह सोया और उधर इसके बहुतसे विद्यार्थी शहर देखने को चल दिये । गन्धर्वसेनाको जब पांचालके आने और उसके पाण्डित्यकी खबर लगी । वह इसे देखने को आई । उसने इसे बहुतसी वीणाओंको आस-पास रखे सोया देख कर समझा तो सही कि यह विद्वान् तो बहुत भारी है, पर जब उसके लार बहते हुए मुँह पर उसकी नजर गई, तो उसे पांचालसे ड़ी नफरत हुई । उसने फिर उसकी ओर आँख उठाकर भी न देखा और जिस झाड़के नीचे पांचाल सोया हुआ था । उसकी चन्दन, फूल वगैरह से पूजा कर वह उसी समय अपने महल लौट आई । गन्धर्वसेना के . जाने बाद जब पांचालकी नींद खुली और उसने वृक्षका गध-पुष्पादिसे पूजा हुआ पाया तो कुछ संदेह हुआ । एक विद्यार्थीसे इसका कारण पूछा तो उसने एक खोके आने और इस वृक्षको पूजा कर उसके चले जानेका हाल पांचालसे कहा । पांचालने समझ लिया कि गन्धर्वसेना आकर चली गई । तब उसने सोचा यह तो ठीक नहीं हुआ । सोने ने सब बना-बनाया खेल 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy