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________________ आराधना कथाकोश नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने जिनप्रतिमा मँगवाकर उसे लाँध जानेके लिये सबको कहा। सब विद्यार्थी तो लांघ गये, अब अकलंककी बारी आई, उन्होंने अपने कपड़ेमेंसे एक सूतका सूक्ष्म धागा निकालकर उसे प्रतिमापर डाल दिया और उसे परिग्रही समझकर वे झटसे लाँघ गये। यह कार्य इतनी जल्दी किया गया कि किसीकी समझमें न आया । बौद्धगुरु इस युक्तिमें भी जब कृतकार्य नहीं हुए तब उन्होंने एक और नई यक्ति की। उन्होंने बहुतसे काँसोके बर्तन इकट्ठे करवाये और उन्हें एक बड़ी भारी गौनमें भरकर वह बहुत गुप्त रीतिसे विद्यार्थियोंके सोनेकी जगहके पास रखवा दी और विद्यार्थियों की देख रेखके लिये अपना एक-एक गुप्तचर रख दिया। ___आधी रातका समय था। सब विद्यार्थी निडर होकर निद्रादेवीकी गोदमें सुखका अनुभव कर रहे थे। किसीको कुछ मालूम न था कि हमारे लिये क्या-क्या षड्यन्त्र रचे जा रहे हैं। एकाएक बड़ा विकराल शब्द हुआ । मानों आसमानसे बिजली टूटकर पड़ी। सब विद्यार्थी उस भयंकर आवाजसे काँप उठे। वे अपना जीवन बहुत थोड़े समयके लिये समझकर अपने उपास्य परमात्माका स्मरण कर उठे। अकलंक और निकलंक भी पंच नमस्कार मंत्रका ध्यान करने लग गये । पास ही बौद्धगुरुका जासूस खड़ा हुआ था। वह उन्हें बुद्ध भगवान्का स्मरण करनेकी जगह जिन भगवान्का स्मरण करते देखकर बौद्धगुरुके पास ले गया और गुरुसे उसने प्रार्थना की। प्रभो! आज्ञा कीजिये कि इन दोनों धूर्तोंका क्या किया जाय ? ये हो जैनी हैं । सुनकर वह दुष्ट बौद्धगुरु बोला-इस समय रात थोड़ी बीती है, इसलिये इन्हें लेजाकर कैदखानेमें बन्द कर दो, जब आधीरात हो जाय तब इन्हें मार डालना । गुप्तचरने दोनों भाइयोंको ले जाकर कैदखानेमें बन्द कर दिया। ___अपनेपर एक महाविपत्ति आई देखकर निकलंकने बड़े भाईसे कहाभैया ! हम लोगोंने इतना कष्ट उठाकर तो विद्या प्राप्त की, पर कष्ट है कि उसके द्वारा हम कुछ भो जिनधर्मकी सेवा न कर सके और एकाएक हमें मृत्युका सामना करना पड़ा । भाई की दुःखभरी बात सुनकर महा धोरवीर अकलंकने कहा-प्रिय ! तुम बुद्धिमान हो, तुम्हें भय करना उचित नहीं। घबराओ मत । अब भी हम अपने जीवनकी रक्षा कर सकंगे। देखो मेरे पास यह छत्री है, इसके द्वारा अपनेको छुपा कर हम लोग यहाँसे निकल चलते हैं और शीघ्र ही अपने स्थानपर जा पहुँचते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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