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________________ २१० आराधना कथाकोश इसीकी उसे एक चिन्ता थीं। पर यह प्रसन्नताकी बात है कि वह सदा चिन्तासे घिरा न रहकर इसी कमीको पूरी करनेके यत्नमें लगा रहता था। एकबार सात दिन बराबर पानोकी झड़ी लगी रही। नदी-नाले सब पूर आ गये। पर कर्मवीर लुब्धक ऐसे समय भी अपने दूसरे बैलके लिए लकड़ी लेनेको स्वयं नदी पर गया और बहती नदीमेंसे बहुत-सी लकड़ी निकालकर उसने उसकी गठरी बाँधी और उसे आप ही अपने सिर पर लादे लाने लगा। सच है, ऐसे लोभियोंकी तृष्णा कहीं कभी किसीसे मिटी है ? नहीं। ' इस समय रानी पुण्डरीका अपने महल पर बैठी हुई प्रकृतिकी शोभाको देख रही थी। महाराज अभयवाहन भी इस समय यहीं पर थे। लुब्धकको सिर पर एक बड़ा भारी काठका भारा लादकर लाते देख रानीने अभयवाहनसे कहा-प्राणनाथ, जान पड़ता है आपके राजमें यह कोई बड़ा ही दरिद्री है। देखिए, बेचारा सिर पर लकड़ियोंका कितना भारी गट्ठा लादे हुए आ रहा है। दया करके इसे कुछ आप सहायता दीजिए, जिससे इसका कष्ट दूर हो जाय । यह उचित ही है कि दयावानों की बुद्धि दूसरों पर दया करनेको होती है । राजाने उसी समय नौकरोंको भेजकर लुब्धकको अपने पास बुलवा मँगाया। लुब्धकके आने पर राजाने उससे कहा-जान पड़ता है तुम्हारे घरकी हालत अच्छी नहीं है । इसका मुझे खेद है कि इतने दिनोंसे मेरा तुम्हारी ओर ध्यान न गया। अस्तु, तुम्हें जितने रुपये पेसेको जरूरत हो, तुम खजानेसे ले जाओ। मैं तुम्हें अपनी सहीका एक पत्र लिख देता हूँ। यह कहकर राजा पत्र लिखनेको तैयार हुए कि लुब्धकने उनसे कहा-महाराज, मुझे और कुछ न चाहिए; किन्तु एक बैलकी जरूरत है। कारण मेरे पास एक बैल तो है, पर उसकी जोड़ी मुझे मिलाना है। राजाने कहा-अच्छी बात है तो, जाओ हमारे बहतसे बैल हैं, उनमें तुम्हें जो बैल पसन्द आवे उसे अपने घर ले जाओ। राजाके जितने बैल थे उन सबको देख आकर लुब्धकने राजासे कहा-महाराज, उन बैलोंमें मेरे बैल सरीखा तो एक भो बैल मुझे नहीं देख पड़ा । सुनकर राजाको बड़ा अचम्भा हुआ। उन्होंने लुब्धकसे कहा-भाई, तुम्हारा बैल कैसा है, यह मैं नहीं समझा। क्या तुम मुझे अपना बैल दिखाओगे? लुब्धक बड़ी खुशीके साथ अपना बैल दिखाना स्वीकार कर महाराजको अपने घर पर लिवा ले गया। राजाका उस सोनेके बने बेलको देखकर बड़ा अचम्भा हुआ। जिसे उन्होंने एक महा दरिद्रो समझा था, वही इतना बड़ा धनी है, यह देखकर किसे अचम्भा न होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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